अयोध्या। अंतरराष्ट्रीय मनोजागरूकता माह कार्यक्रम के तहत राजकीय बृज किशोर होमियोपैथी कालेज में आयोजित कार्यशाला में डा. आलोक मनदर्शन ने बताया कि एक शोध से यह तथ्य सामने आया है कि आज के युग में जहां सोशल मीडिया जनित दोस्तों की फ़ौज मौजूद है, वहीं दूसरी तरफ वास्तविक दोस्तों की संख्या तथा मेल मिलाप की कमी खालीपन व बेचौनी का कारण बन रही है। इसमें उत्प्रेरक का कार्य कर रहें हैं आभासी व डिजिटल दुनिया के दोस्तों की बनावटी व आत्ममुग्धता भरी पोस्ट,कमेंट व फ्रेंड फॉलोविंग। चिंतालु व्यक्तित्व के लोगों तथा पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह अधिक पायी जाती है। ऐसे लोगों में पैनिक अटैक या तीव्र घबराहट के दौरे भी पड़ सकते है। एंग्जाइटी का मनोशारीरिक या साइकोसोमैटिक असर भी होता है। पाचन क्रिया से लेकर हृदय की धड़कन तक शरीर की हर एक कार्यप्रणाली इससे दुष्प्रभावित होती है। मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेनलिन हॉर्माेन बढ़ जाता है जिससे चिंता, घबराहट, डर, भय, एडिक्टिव इटिंग, आलस्य, मोटापा , अनिद्रा,हृदय की असामान्यत अनुभूति या कार्डियक न्यूरोसिस, पेट खराब रहना या गैस्ट्रिक न्यूरोसिस व नशे की घातक स्थिति पैदा हो सकती है। रीयल दोस्तों संग बातचीत व हंसी ठिठोलीं न केवल मनोतनाव पैदा करने वाले मनोरसायन कॉर्टिसाल के स्तर को कम करते है बल्कि हैप्पी हार्माेन सेरोटोनिन व डोपामिन तथा आत्मीयता व आनन्द की अनुभूति वाले हार्मोन एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन की मात्रा को बढ़ावा देते हैं जिससे स्फूर्ति, उमंग, उत्साह ,आनन्द व आत्मविश्वास का संचार होता है।
बचाव के लिए डा मनदर्शन ने बताया कि स्ट्रेस व एंग्जायटी एक हफ्ते से ज्यादा महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। कार्यशाला की अध्यक्षता प्राचार्य डा आशीष कुमार सिंह व संयोजन डा माधुरी गौतम ने किया।