अयोध्या। डॉ आलोक मनदर्शन ने बताया कि राष्ट्रीय पर्व की आहट से ही मन मस्तिष्क में उत्साह उमंग की अनुभूति के साथ ही राष्ट्र के प्रति समर्पण व सम्मोहन जैसी मनोदशा भी हावी होने लगती है। यह सम्मोहन स्कूली दिनों की भी याद दिलातें है जब इस दिन की तैयारी में देशभक्ति के नाट्य, भाषण व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में मन तन्मयता व उल्लास से जुट जाता था । इस प्रकार ये पर्व बचपन व स्कूल के दिनों से ही संचारित राष्ट्र भाव को पुनर्जीवित कर देते है और मेन्टल फ़्लैश बैक मे ले जाकर रोमांचित करते है। यह मनोदशा पर्व आने के कुछ दिन पूर्व से लेकर पर्व पश्चात् भी कई दिनों तक बनी रहती है। मनोविश्लेषण की भाषा मे इसे पैट्रियाटिक स्पर्ट या देशभक्ति आवेग कहा जाता है। वैसे तो देशभक्ति या पैट्रियाटिज़्म राष्ट्र के हर एक नागरिक का स्थायी मनोभाव होता है परन्तु राष्ट्र पर्व जनित उत्प्रेण बूस्टर डोज़ जैसा कार्य करने लगता है। यही कारण है प्रत्येक देशवासी एक जैसे मनोभाव से चलायमान दिखने लगता है और अन्य सारे मनोसामाजिक विभिन्नताएं तिरोहित सी नज़र आने लगती हैं। इन मनोभावों के लिये जिम्मेदार मनोरासायनों में फील गुड मनोरसायन सेराटोनिन व डोपामिन का अहम रोल है तथा उत्साह, उमंग व समर्पण का जज्बा पैदा करने वाले मनोरसायन एन्डोर्फिन का विशेष रोल होता है। यही वो मनोरसायन है जो जज्बा , जुनून और देश की एकता और अखंडता के मनोभाव के लिये उत्तरदायी होते है। देश प्रेम के मनोभाव लिये जिम्मेदार मनोरसायन ऑक्सीटोसिन के संवर्धन में राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रगान उत्प्रेरक का कार्य करते है।