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भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय आपातकाल – अचानक सुबह सड़कों पर पसरा सन्नाटा

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◆ सायरन बजाती गाड़ियां व पुलिस के बूटों की आवाज तोड़ रही थी सन्नाटा


◆ हर आदमी के मन में एक सवाल आखिर हो क्या गया


◆ सुबह स्टालों से अखबार गायब, हर जगह बौखलाहट का आलम


अयोध्या। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन कहे जाने वाले आपातकाल की घोषणा पूर्व 25/26 जून 1975 की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी के अनुशंशा पर हुई थी। यह पहला मौका था जब देश में आंतरिक व सियासी कारणों से आपातकाल लागू हुआ था। देर रात तक सड़कों पर चहल पहल देखकर घरों में सोये लोग सुबह जागे तो उनके लिए माहौल चौकाऊ था। सड़कों पर सन्नाटा पसरा था सायरन बजाती गाड़ियों की आवाजाही व गश्त कर रही पुलिस व पीएससी की टुकड़िया लोगों का कौतूहल बढ़ा रही थी। हटो बचों के माहौल के बीच लोग सुबह उठकर चौराहे, तिराहे पहुंचे तो मंजर बदला बदला सा था। क्या क्यों और कैसे आदि सवाल फजाओं में तैर रहे थे। हर कोई एक दूसरे से हालात के बारें में जानकारी करना चाह रहा था।



  सुबह लगभग नौ बजे तक चौराहे तिराहे पर लगे समाचार पत्रों के स्टाल व हाकरों के माध्यम से बहुतायत घरों में पहुंचे समाचार पत्रों से वर्ग विशेष के यह जानकारी हुई कि देश में आपातकाल लागू हो गया है और नागरिक अधिकार निलम्बित कर दिये गये है। लेकिन आपातकाल और नागरिक अधिकारों के निलम्बन की जानकारी आम लोगो को न होने के कारण जिज्ञासु जन एक दूसरे से पूछ रहे थे क्या हुआ क्या होगा। समाचार पत्रों से भी लोगो को पता चला कि देश के गैर कांग्रेसी बड़े नेता बाबू जय प्रकाश नारायन अशोक मेहता, अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवानी, चौधरी चरण सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मनीराम बाधुड़ी, सहित हजारों की संख्या में नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है।



  सूचनाओं के आदान प्रदान के साधन सीमित होने के कारण गैर कांग्रेसी दलों के नेता एक दूसरे से सम्पर्क कर स्थिति का जायजा लेने में जुटे तो दूसरी ओर कार्यकर्ता मार्गदर्शन के लिए नेताओं की खोजखबर में जुटे रहे। नौ बजते बजते चौराहे तिराहे पर लगे समाचार पत्रों के स्टाल हटवा दिये गये और समाचार पत्र जब्त कर लिये गये। जहां तहां मिले हाकरों से भी समाचार पत्र ले लिये गये।

             दोपहर तक न केवल आम लोगो में बल्कि सरकारी अमलें में भी बदहवासी का आलम रहा। एक ओर आम जनता यह नहीं समझ पा रही थी कि क्या कहना है तो दूसरी ओर सरकारी अमला भी आदेशों की व्याख्या व बड़े अधिकारियों से मिलने वाले निर्देश की प्रतीक्षा में लगा रहा। दोपहर बाद गैर कांग्रेसी दलों व संगठनों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की खोजखबर में पुलिस भी जुट गयी। लेकिन इतना समय बीतते बीतते एक दूसरे के जरीए राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में गिरफ्तार हो जाने का संदेश प्रसारित हो चुका था। लगभग सभी प्रमुख कार्यकर्ता घरों से हट गये थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुस्लिम मजलिस व बाबा जयगुरुदेव के संगठन पर प्रतिबंध लगाने सहित समाचार पत्रों पर भी सेंसर लागू कर दिया गया।



जनपद में सर्वजीत लाल वर्मा की हुई पहली गिरफ्तारी


इसके बाद क्रमशः राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का सिलसिला शुरु हो गया। पहली गिरफ्तारी समाजवादी नेता रहे बाबू सर्वजीत लाल वर्मा एडवोकेट की कचेहरी से हुई। उन्हें पुलिस ने वार्ता के लिए बुलाया बाद में चालान कर दिया। इसी दिन शाम तक आरएसएस के कार्यवाह रहे गुरुदत्त सिंह एडवोकेट की भी गिरफ्तारी हो गयी। इन लोगो पर पुलिस ने टेलीफोन का खम्बा व तार तोड़ने तथा सरकार विरोधी भाषण देकर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। जिले में दर्ज हुई इस पहली एफआईआर में समाजवादी नेता श्रीराम द्विवेदी, माता प्रसाद तिवारी, मधुबन सिंह, सहित दर्जनों लोगो को शामिल दिखाया गया। हालांकि दो को छोड़कर बाकी की गिरफ्तारी बाद में हुई।



   कालांतर में पुलिस राजनीतिक संगठनों व आरएसएस मुस्लिम मजलिस व बाबा जयगुरुदेव के संगठन से जुड़े लोगो को सरकार विरोधी गतिबिधियों में लिप्त होना दिखाकर डीआईआर व मीसा की धाराओं में गिरफ्तार कर जेल में ठूसती रही। जेल में भी आमनवीय व्यवहार व मानसिक प्रताड़ना का दौर चलता रहा। एकजाई स्वरुप वाले इस जिले के लगभग साढ़े चार सौ नेता व कार्यकर्ता गिरफ्तार कर जेल में डाल दिये गये थे।

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