अयोध्या। नशे की लत व हिंसक व्यवहार में प्रबल सहसंबन्ध है। नशे से ब्रेन न्यूक्लियस में हैप्पी हार्मोन डोपामिन की बाढ़ होने से मस्ती का एहसास होता है तथा एक सीमा से ज्यादा बढ़ने पर सब्स्टेंस-इंड्यूस्ड साइकोसिस या नशा- जनित मनोअगवापन का रूप ले सकता है जिससे स्वजन व करीबी व्यक्तियों पर भी अनायास क्रोध इस तरह बढ़ सकता है कि नसेड़ी व्यक्ति जान लेने या देने तक के कृत्य कर सकता हैं। यही स्थिति होमीसाइड या परिजन हत्या व सुइसाइड या आत्महत्या की घटनाएं बन सकती है। नशे से ब्रेन न्यूक्लियस में डोपामिन नामक मनोउत्तेजक रसायन का स्तर कम होने पर ब्रेन मेमोरी-सेंटर हिप्पोकैम्पस द्वारा डोपामिन की तलब पैदा होती है जिसे डिपेंडेंस तथा नशे की मात्रा बढ़ती जाती है जिसे टोलेरेन्स कहा जाता है। अन्य मनोविकार से ग्रसित, नशे की पारिवारिक पृष्ठभूमि या मित्रमण्डली से सरोकार उत्प्रेरक का कार्य करते हैं । मनोउत्तेजक रसायन डोपामिन यौन-उन्माद भी प्रेरित कर सकता है और बनता है नशे और सेक्स का कोकटेल जिससे यौन- हिंसा या असुरक्षित सेक्स की संभावना होती है। यह बाते जिला चिकित्सालय के मन-कक्ष में आयोजित नशा-निदान व प्रबंध कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन द्वारा बतायी गयी। सब्स्टीट्यूशन- थेरेपी में नशे को शमन करने वाली दवाइयो से नशे की तलब को रोकने मे मदद तो मिलती ही है,साथ ही नशा जनित उन्माद की क्रमिक-उदासीन उपचार व बेहैवियर-मॉडलिंग काफी कारगर होती है। सपोर्टिव व फैमिली रेहैबिलिटेशन थेरेपी के माध्यम से नशा मुक्त स्वस्थ जीवन चर्या विकसित हो सकती है।