अयोध्या। श्री आध्यात्म शक्तिपीठ के संस्थापक व निर्वाहक गुरु रहे पंडित रामकृष्ण पाण्डेय आमिल ने आध्यात्म की बारीकियों व सच्चाईयों से सम्पर्क में आने वाले को भली भांति अवगत कराया। रुचि रखने वाले शिष्यों को साधना मार्ग में पारंगत भी किया। मूलतः स्वभाव से समाजवादी रहे रामकृष्ण पाण्डेय ने आध्यात्म में भी समाजवाद पिरोया। उनकी तपोस्थली अध्यात्म शक्तिपीठ मुबारक गंज में न तो जाति का बंधन है और न ही मजहब की दीवार न ही चढ़ावा का चलन और दिखावा की दरकरार।
देश की ख्यातिलब्ध शक्तिपीठ श्री पीताम्बरा पीठ दतिया मध्य प्रदेश के पीठाधीस्वर स्वामी जी महराज के सम्पर्क में आये शिक्षक रामकृष्ण पाण्डेय ने काबिल से आमिल तक की यात्रा समपर्ण व कठिन परिश्रम के बूते चुपचाप पूरी की। आरडी इंटर कालेज सोहावल में शिक्षक व बाद में प्रधानाचार्य रहे रामकृष्ण पाण्डेय स्वामी जी के सम्पर्क में आने के बाद धीरे धीरे उनके कृपा पात्र शिष्यों में शुमार हो गये। कालांतर में स्वामी जी की अनुमति से ही मुबारक गंज में शक्ति पीठ की स्थापना कर उसे अपनी तपोस्थली बनाया। गुरु श्री के सम्पर्क में जो लोग भी आये उन्हें क्या मिला यह वही जानते है। प्रचार व पाखण्ड से दूर गुरु श्री जीवन पर्यन्त अध्यात्म की राह को भी मानव सेवा के लिए समर्पित करते रहे। इनमें निहित खूबियों व साधना शक्ति के बारें में वहीं लोग जान पाये जो एक दूसरे के जरीए उनके सम्पर्क में आये।
किसी समय प्रदेश के मुख्य सचिव रहे भोलानाथ तिवारी सहित प्रदेश के बहुत से अधिकारी गण व जिले के विशिष्ट जन उनके सम्पर्क में शिष्यवत रहे। लेकिन अंतिम सांस तक उन्होने किसी की कोई भी मद्द स्वीकार नहीं की। वे कहा करते थे कि शक्तिपीठ परिसर को ही इतना जागृत कर जायेंगे कि विधान पूर्वक व डाली गयी परम्परानुसार पूजन अर्चन होते रहने से यहां आने वाले किसी भी श्रद्धालु को स्वतः राहत महसूस होगी। आमिल की काया में छिपी माया व खूबियों के बारें में बहुत लिख जा सकता है। उनके सम्पर्क में रहे लोग बहुत से चौकाऊ दृष्टांत के साक्षी भी है। उनके निधन पर शायरों ने लिखा था ‘‘समझ सका न जिसे जमाना वो अजीम सख्शियत थे आमिल’।