Home Ayodhya/Ambedkar Nagar अयोध्या  गोपनीय नशे की लत में किशोर

 गोपनीय नशे की लत में किशोर

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◆ टालुइन की हवा है किशोर गोपनीय नशा


◆ टालुइन बन गया है टीनेज स्निफर ड्रग


अयोध्या। स्टेशनरी, व्हाइटनर, मार्कर,कलरिंग पेन,स्प्रे पेंट,पेंट थिनर,प्राइमर व कॉस्मेटिक आइटम मे पाया जाने वाला तरल पदार्थ टालुइन का नशे के रूप मे होने वाला इस्तेमाल किशोरो में गोपनीय, सुलभ व सस्ते नशे की लत को बढ़ा रहा है। सूंघने मात्र से इंस्टेंट नशे की  अनुभूति कराने वाला यह पदार्थ हवा के सम्पर्क मे आते ही तेजी से वाष्पीकृत होने लगता है और सूंघते ही ब्रेन में पहुंच कर डोपामिन सेंटर को असामान्य रूप से सक्रिय कर देता है । डोपामिन का स्तर बढ़ते ही उमंग व उत्तेजना होने लगती है क्योंकि किशोर मस्तिस्क का भावनात्मक केन्द्र अमिगडाला ग्लैंड अति संवेदनशील होता है। इस प्रकार टालुइन युक्त विभिन्न आइटम बन रहें है गोपनीय स्निफर ड्रग। यह बातें जिला चिकित्सालय के मनोरोग विभाग में आयोजित “किशोर गोपनीय नशे की लत जागरूकता“ कार्यशाला मनोपरामर्शदाता डा बृज कुमार व डा आलोक मनदर्शन ने दिया।


दुष्प्रभाव : इसके दुष्प्रभाव शॉर्ट टर्म व लॉन्ग टर्म होते हैं। शॉर्ट टर्म दुष्प्रभाओं में एकाग्रता में कमी,अनिद्रा या अतिनिद्रा, भूख में परिवर्तन, सेक्स उत्तेजना, आक्रामकता, तलब पूरी न होने पर बेचैनी, मांसपेशियों मे ऐठन, सर दर्द, उलटी, पेटदर्द जैसे लक्षण दिखायी पडतें है।  दीर्घकालिक दुष्प्रभाओं में अन्य नशे की लत, लिवर व किडनी डिसीज, आंखो की रोशनी जाना, तंत्रिका तंत्र को नुकसान व मौत तक  की संभावाना होती है ।


सलाह : सामान्यतः मूड, व्यक्तित्व विकार या अस्वस्थ पेरेंटिंग से ग्रसित किशोरो मे इस लत से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा होती है तथा हमजोली समूह का बहुत योगदान होता है। यह समूह स्कूल,कोचिंग आदि जगहों पर बनतें है।  कुछ किशोर इनफ्लुएंसर व स्पोंसर का भी कार्य करते हैं।  अधिकांश परिज़न व शिक्षक नशे के इस गोपनीय व छद्म रूप से अनभिज्ञ होतें है और ऐसी वस्तुओं को सामान्य स्टडी या अन्य आर्टिकल मान कर निश्चिन्त रहतें है। विक्रेता इन वस्तुओ के दुरुपयोग को जानते हुए भी स्वनिहितार्थ या दबाव मे इन एब्यूजर्स को वस्तुएँ बेचते रहते हैं। ऐसे किशोर भी इन वस्तुओं को हासिल करने के स्मार्ट तरीके ईजाद करते रहतें हैं तथा शक होने पर इससे इन्कार करते रहते है। पेशाब की जांच से इस नशे की गोपनीय जाँच संभव है अभिभावक शिक्षक जागरूकता तथा चिन्हित किशोरो मे डी एडिक्टिशन ट्रेनिंग व पेरेंटल कोपिंग सत्र बहुत ही प्रभावी होतें है। लक्षण दिखने पर मैत्री पूर्ण व सतर्क मनो सलाह अवश्य लें।

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