अयोध्या। अंडमान निकोबार में निवास करने वाली जरवा जनजति के आदिवासी। जिनके बुर्जुग आज भी वस्त्र धारण नही करते है। वृक्षों पर रहते है। आधुनिकता से पूर्णतया दूर है। यह जनजाति मात्र 15 साल पूर्व ही आधुनिकता के सम्पर्क में आई है। ऐसे परिवेश से निकल कर आए दो धर्नुधारियों को राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता के मंच से सम्मानित किया गया। उ.प्र. तीरंदाजी संघ के महासचिव अजय गुप्ता ने रामनामी, राममंदिर का मॉडल तथा प्रसाद देकर उन्हे सम्मानित किया।
धर्नुधर बुलबा और डेच भी राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए अड़मान से अयोध्या पहुंचे हैं। उनके साथ वेंकेटेश राव कोच भी हैं। दोनों धनुर्धर बताते हैं कि परंपरागत धनुष और आधुनिक धनुष दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। हम बहुत ताकत लगाकर और अनुमान से ही तीर चलाते रहे हैं। हम लोग तो भागते हुए लक्ष्य भेदने का ही अभ्यास रखते हैं। जबकि आधुनिक धनुष लक्ष्य को देखने और कम प्रयास से भेदने की सुविधा होती है। आधुनिक धनुष के साथ तालमेल बैठाने में समय लगेगा।