नई दिल्ली। केंद्रीय मत्स्य,पशुपालन तथा डेयरी मंत्रालय द्वारा 7 जून 2023 को जारी मेमोरेंडम में पशुधन और पशुधन उत्पाद (आयात और निर्यात) विधेयक, 2023 के संशोधन हेतु 10 दिन के अंदर सुझाव मांगे गए हैं। इस जानकारी को पशु प्रेमियों के बीच पहुंचते ही उनकी नाराजगी, रोश और असंतोष का माहौल पैदा हो गया है। देश के कई जगहों पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं।चूँकि यह विषय पशु प्रेम जैसे भावनात्मक विषय से जुड़ा हुआ है इसलिए पशु प्रेमियों के साथ चिकित्सक, शिक्षक,विद्यार्थी,विशेषज्ञ तथा समाजसेवी से लेकर आम आदमी अपने विचारों को सीधे केंद्रीय मंत्री , प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेज रहा है। देश के जाने माने विशेषज्ञ तथा एनिमल वेलफेयर ( पशु कल्याण) के जानकार भी इस बिल के संशोधन से असहमत है, खासकर, जब देश अगले साल लोकसभा चुनाव की चुनौतियों से मुकाबला कर रहा होगा। यह बता दें कि हमारे देश में पशु कल्याण संबंधी वहूचर्चित केंद्रीय कानून – “जीव जंतुओं का निवारण अधिनियम,1960“ के तहत 1962 में स्थापित भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड द्वारा जीव दया एवं करुणा का प्रचार प्रसार किया जाता है जिसमें गौ संरक्षण- संवर्धन के मामले भी सम्मिलित है। केंद्र सरकार उन्हें हर प्रकार की सुविधा एवं बढ़ावा दे रही है । लेकिन यह विधेयक का मामला पशु प्रेमियों में खलबली मचा दिया है। गौसंरक्षण कार्यकर्ता कह रहे कि अब गाय भी बिकी की वस्तु बन जाएगी।
इस विधेयक के अंतर्गत कई ऐसे मामले शामिल है जो भारतीय संविधान गरिमा बताया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के प्रावधानों के प्रतिकूल बताया जा रहा है। सबसे अधिक नाराजगी जैन समाज के कई संस्थाओं की ओर से हुई है। जिसमें मुंबई की अखिल भारत गो सेवा संघ एवं समस्त महाजन, मध्य प्रदेश इंदौर शहर की दिगंबर समाज और पश्चिम बंगाल की संस्था पद्म-पर्व कल्याण फाउंडेशन ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस विधेयक में संशोधन करने से पशुधन और पशुधन उत्पाद का आयात- निर्यात तेज हो जाएगा। जिससे देश के गरिमा को सिर्फ ठेस ही नहीं लगेगा बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए घातक होगा। जैन समुदाय से लोग पूछ रहे हैं कि क्या गाय भी अब बिक्री की वस्तु बन जाएगी । भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पूर्व वाइस चेयरमैन एवं प्राणी मित्र पुरस्कार से सम्मानित, डॉ एस चिन्नी कृष्णा ने कहा कि “मुझे आश्चर्य हो रहा है कि हमारी सरकार जानवरों के निर्यात के बारे में भी सोचेगी और उनका जिंदा निर्यात किया जाएगा।“ उन्होंने आगे कहा कि “प्रत्येक पशु हमारे जीवन के मूल्यवान एवं दुर्लभ हिस्सा है । वह हमारी धरती की उपजाऊ मिट्टी और जल संसाधनों के संरक्षण के महत्वपूर्ण कारक है,ताज्जुब है अब हम उन्हें निर्यात करेंगे !“ महात्मा गांधी जी द्वारा वर्ष 1928 में स्थापित अखिल भारत कृषि गौ सेवा संघ के ट्रस्टी कमलेश शाह ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति जताई है और कहा है कि इस विधेयक को वापस लेना होगा । उन्होंने बताया कि देश के कई जगहों पर उनके नेतृत्व में लोग मौन प्रदर्शन कर रहे हैं ।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रथम अध्यक्ष, डॉ. वल्लभभाई कथीरिया इस विधायक के संशोधन को राष्ट्रीय गो संपदा के लिए चिंताजनक परिस्थिति कहा है। उन्होंने कहा कि “इस विधेयक में पशुओं को कमोडिटी ( वस्तु) के श्रेणी में लाने का विचार अत्यंत दुखद है।“ पिछले महीने उनकी संस्था – जीसीसीआई-ग्लोबल कंफीडेरेशन ऑफ काऊ बेस्ड इंडस्ट्रीज के तत्वावधान में गुजरात के राजकोट में गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आयोजित गऊ टेक एक्सपो 2023 के व्यापक सफलता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “भारतीय पशुधन को पर्यावरण संरक्षण तथा भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सर्वश्रेष्ठ साधन साधन है। गोबर-गोमूत्र को वास्तविक गोल्ड माइन कहा । भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं समस्त महाजन संस्था के संस्थापक , गिरीश जयंतीलाल शाह ने सभी पशु प्रेमियों से आग्रह करते हुए कहा कि “इस विधेयक को वापस करने के लिए कोशिश किया जाएगा। अपने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के सहयोग से विधेयक को वापस करने के लिए अनुरोध किया जाना चाहिए।“ भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के वैज्ञानिक-सदस्य एवं आईवीआरआई के पूर्व निदेशक, प्रोफेसर (डॉ।) आर एस चौहान ने बताया कि “यह मामला गंभीर है। 4 जुलाई 2023 को भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के 51वें जनरल मीटिंग में इस विषय पर चर्चा किया जाएगा और देश के ग्राम्य संस्कृति की आत्मा कही जाने वाली गाय को विधेयक से अलग रखने तथा पशुधन को कमोडिटी के श्रेणी में न रखने का आग्रह किया जाएगा।
कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कई विशेषज्ञ एवं पशु प्रेमी – अधिवक्ता आगे आए हैं जिन्होंने पशु अधिकारों की बात कही है। बताया है कि जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अनुसार देश के सभी जीव जंतुओं तो मनुष्य के अधिकारों के समान जीने का अधिकार है। अंतरराष्ट्रीय पटल से लेकर भारत में भी इन अधिकारों-“पशु पक्षियों के 5-आजादी(फाइव फ्रीडम)के सिद्धांत“ की मान्यता और उसकी राष्ट्रीय स्वीकृति का हवाला दिया। राजस्थान के अलवर से अधिवक्ता एवं समाजसेवी खिल्ली मल जैन ने पत्र लिखकर आग्रह किया है कि इससे पूर्व बनाए गए कानून जैसे- पशुधन आयात अधिनियम, 1898 तथा पशुधन आयात (संशोधन) अधिनियम, 2001 का कोई महत्व नहीं है और यह हमारे संविधान के निर्देशक सिद्धांतों के विरुद्ध है। इतना ही नहीं बल्कि संविधान के अनुच्छेद-48, 51-ए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 मई 2014 को एडब्ल्यूबीआई बनाम ए. नागराजा तथा अन्य मामले में दिए गए निर्णय के अंतर्गत जानवरों को दर्द और असुविधा, दर्द, चोट, बीमारी, भूख, जोर, भय, संकट से मुक्ति और सामान्य व्यवहार व्यक्त करने के खिलाफ मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए।