कदाचित किसी शायर द्वारा कही गयीं उपर्युक्त पंक्तियां आदिकाल में कभी जगद्गुरु रहे भारत की विशाल गंगा जमुनी संस्कृति की सार्वभौमिक व्यापकता का बोध कराने की दृष्टि से आज भी समीचीन औरकि प्रासङ्गिक हैं।कहना अनुचित नहीं होगा कि यही सांस्कृतिक विशालता ही भारत की एकता और अक्षुणता के बीजमन्त्र हैं।जिनको नष्ट करने के लिए हजारों सालों से एक के बाद एक करके अनेक प्रहार होते रहे किन्तु यह झंझावातों को झेल झेल कर पुनः पुनर्जीवित हो जाती है।अतएव राष्ट्रविरोधी शक्तियां अब भारत की सेनाओं से लड़ने में स्वयम को अक्षम पाकर यहाँ के सांस्कृतिक व सामाजिक तानेबाने की छिन्नभिन्न करने के अनेक कुत्सित प्रयास कर रही हैं।अतः समय रहते भारतीयों का जागरूक होना तथा इन शक्तियों को मुंहतोड़ जबाब देना आज वक्त की नजाकत और समय की माँग तथा राष्ट्रीय एकता के मद्देनजर नितांत आवश्यक है।
भारत की एकता और अखंडता को जिन बाह्य व छद्म आंतरिक शक्तियों से गम्भीर खतरा है उनमें समानता के नाम पर एकछत्र साम्राज्य स्थापित करने की चाह रखने वाले माओवादी तथा नक्सली,गरीबों व पीडितों की मदद के नामपर मतांतरण कराने वाली इस्लामी व ईसाई शक्तियां,प्रान्तों व केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के चक्कर में देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बांग्लादेशी रोहिंग्यों की बस्तियां बसाने वाली प्रान्तों की कुछेक सरकारें व उनके समर्थक राजनैतिक दल,सत्य सनातन धर्म की प्रासंगिकता पर समय समय पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले लोग,आस्था और शक्ति के प्रतीक रहे धर्मस्थलों व मंदिरों के प्रति हिंदुओं का घटता अनुराग,समाज में पनपते जातीय नेताओं को विदेशों से भारतविरोधी शक्तियों द्वारा फंडिंग,विधर्मी ताकतों द्वारा पंथ विशेष को ही सर्वश्रेष्ठ तथा अन्य को निम्न बताकर फतवों व नारों की सहायता से नौजवानों को बचपन से ही ब्रेन वाशिंग करके देशविरोधी गतिविधियों में सम्मिलित करते हुए भारतविरोधी अभियानों को शह देना तथा भारत की शिक्षा व्यवस्था में हस्तक्षेप करते हुए भारतीय सेनानियों,महापुरुषों व वैदिक ज्ञान विज्ञान से विद्यार्थियों को विरत करना आदि प्रमुख कारक हैं।
समानता और बराबरी के नारों तले खून की होलियां खेलने वाले माओवादी व नक्सली ऐसे भटके हुए भारतविरोधी तत्व कहे जा सकते हैं जो भोलीभाली जनता को केवल समस्याएं ही समझाते हैं तथा कभी भी समाधान नहीं बताते।ये लोग बंदूक की गोलियों से समाधान पाने हेतु युवकों को जहाँ देशविरोधी बनाते हैं वहीं आजन्म अपनी सरकार बनाने के दिली इच्छुक रहते हैं।समानता और बराबरी से इनका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता है।इसीप्रकार इस्लामिक व ईसाई मिशनरियां चंगाई मीटिंगें करके गरीबों की मदद करने के एवज में पहले उनका मतांतरण करती हैं।यहां यह प्रश्न विचारणीय है कि वह कौन सा खुदा या भगवान या ईसा मसीह हैं जो सहायता करने के पहले पंथ परिवर्तन को आवश्यक समझते हैं।दरअसल यह सनातन संस्कृति के संवाहक लोगों को दिनोंदिन कम करने की एक सोची समझी साजिश है।
भारत की जैव विविधता के बावजूद एकता के प्राणभूत तत्व धर्म और संस्कृति के चलते विदेशियों ने भले ही शकुनिचाल से इसपर समय समय पर अधिकार किया मगर ज्यादा दिनों तक स्थायी नहीं रहे।यही कारण है कि भारत विरोधी शक्तियां यहाँ की धार्मिकता की भावनाओं से भी छेड़छाड़ करने से भी बाज नहीं आतीं।इसीतरह कट्टर मौलवियों द्वारा बचपन से ही बच्चों को धर्म के नामपर आक्रामक बनाकर अन्य धर्मों के उपासकों व अनुयायियों को काफिर कहना भी आतंकवाद और पंजाब के परिप्रेक्ष्य में उग्रवाद का पोषण करता है।जिनपर लगाम लगनी अपरिहार्यता है।सनद रहे कि भारतीय सनातन समाज कभी भी न तो इस्लाम या पंजाबियों के खिलाफ रहा है और न होगा किन्तु इस्लामिक स्टेट और खालिस्तान का समर्थन न तो सनातन हिन्दू समाज कभी किया है और न ही करना चाहिए।
नौजवानों को नशेड़ी बनाकर देश के शौर्य को नष्ट करना भी विदेशियों की सोची समझी नीति है।इतिहास साक्षी है कि देश पर सर्वाधिक बाह्य हमले पंजाब व राजस्थान की तरफ से हुए हैं।यही कारण है कि यहां के लोग लड़ते लड़ते स्वभाव से ही बहादुर होते हैं।अतः विधर्मियों ने यहाँ नशे के साम्राज्य को खड़ाकर गांव गांव नौजवानों को व्यसनी बनाना शुरू कर दिया है,जोकि बहुत ही खौफनाक स्थिति है।अतः पंजाब,राजस्थान,हरियाणा और अन्य स्थानों पर विशेष सतर्कता बरती जाने की नितांत आवश्यकता है अन्यथा देश से शौर्य का नामोनिशान मिटने की प्रबल संभावना है।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर आघात करते हुए इसे कमतर साबित करने का कुचक्र देश को बिखण्डित करने का एक अन्य घातक प्रयास कहा जा सकता है।लार्ड मैकाले के समय में देश में जहाँ तीन लाख के करीब गुरुकुल व 130 से अधिक विश्वविद्यालय थे वहीं आज इनकी संख्या सोचनीय है।शिक्षा की मन मस्तिष्क और आत्मा को परिवर्तित करते हुए देश के प्रति समर्पित नौजवानों को तैयार करने की फैक्ट्री होती है।अतः आक्रमणकारी मुस्लिम लुटेरों व अंग्रेजों दोनों ने यहाँ की सामाजिक एकता की कड़ी शिक्षा व्यवस्था को समूल नष्ट करने की हरसम्भब कोशिश की।आज अंग्रेज़ी माध्यमों की शिक्षा उसी दासता की मानसिकता की पोषक है,जिसे भारतीय समाज अच्छी समझकर अपनाता जा रहा है।अतः भारत के परिप्रेक्ष्य में भारतीय वेद शास्त्रों के साथ साथ भारतीय जीवनमूल्यों की भी शिक्षा देने की अपरिहार्य आवश्यकता है अन्यथा अपने जीवनमूल्यों से विरत और अज्ञानी लोग अपनी ही संस्कृति को घटिया समझकर कालांतर में पर संस्कृति का अनुसरण करते हुए शाश्वत मानसिक गुलामी का वरण करेंगें।
जातीयता की बढ़ती भावना और जातीय नेताओं को राजनैतिक दलों द्वारा मिलता प्रलोभन भारतीय एकता में प्रमुख बाधक तत्व है।जातिगत भेदभाव किसी भी स्थिति में एकता की दृष्टि से उचित नहीं है।अतः हिन्दू समाज को अहम ब्रह्मास्मि से चलते हुए तत्त त्वमसि और अन्तत: एको अहम द्वितियों नास्ति को अंगीकृत करते हुए पुनः राष्ट्र जागरण करना होगा।यदि आज भी हम जागे तो अभी सबेरा होने में देर नहीं लगेगी।हमारी एकता चिरकाल तक बनी रहेगी।