अयोध्या। डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि कड़ाके की ठंढ, कोहरे व धुन्ध भरे मौसम से उपजे शीत-ऋतु भावनात्मक विकार या सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर जैसे उदासी,निराशा, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा या अतिनिद्रा, अनमनापन, मूड स्विंग, थकान, भूख में बदलाव आदि से निजात दिलाने तथा मनोउमंग का संचार करने का नैसर्गिक उपचार बसंत-ऋतु के आगाज से ही शुरु हो जाता है।
कारक व प्रभाव : मस्तिष्क में मौजूद हैप्पी-हार्मोन सेरोटोनिन मूड स्टेबलाइज़र का कार्य करता है जिससे भावनात्मक-स्थिरता का संचार होता है। सूर्य का प्रकाश इसका प्रमुख स्रोत है। बसंत के मौसमी बदलाव से सूर्य-प्रकाश में बढ़ोत्तरी से हैप्पी-हार्मोन सेराटोनिन में वृद्धि तथा स्ट्रेस-हार्मोन कार्टिसाल व एड्रिनलिन में कमी होती है जो मिलकर बसंती-उमंग या स्प्रिंग-यूफोरिया को ट्रिगर करते हैं। इस मौसम में निद्रा-हार्मोन मेलाटोनिन भी सन्तुलित होने से शीत ऋतु जनित अनिद्रा,अति-निद्रा,नींद में बड़बड़ाना, हरकत, चौंकना या स्लीप पैरालिसिस जैसे लक्षण भी तिरोहित होने लगते है ।
मानव मस्तिष्क के लिये 20 से 30 डिग्री सेल्सियस रूम टेम्परेचर अनुकूल है। बसंत की गुनगुनी गरमाहट तथा आउटडोर एक्सपोजर ,जॉगिंग व प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों में विचरण मे वृद्धि तथा सरस्स्वती पूजन,ध्यान व संगीत साधना आदि सेराटोनिन हार्मोन को बढ़ा कर अवसादरोधी प्रभाव को कम करती हैं । साथ ही रिवॉर्ड-हार्मोन डोपामिन व इंडॉर्फिन तथा लव-हार्मोन ऑक्सीटोसिन में वृद्धि मौसमी आनंद का आधार बनती है।