Home अयोध्या समाचार विशेष कुष्मांडा माता के अल्पभक्ति से परम पद प्राप्ति का मिलता है सुख

कुष्मांडा माता के अल्पभक्ति से परम पद प्राप्ति का मिलता है सुख

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◆ चैत्र नवरात्र के चौथे दिन हुई कुष्मांडा माता की आराधना तो पांचवें दिन रविवार को स्कंद माता के स्वरूप में होगी पूजा


बसखारी अंबेडकर नगर। एकैवदेव देवेशि, नवधा परितिष्ठिता’ अर्थात नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त देवी दुर्गा की आराधना का धार्मिक पर्व है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन नव दुर्गा की एक शक्ति की पूजा का विधान है।2023 के चैत्र नवरात्रि में बुधवार को प्रथम शक्ति शैलपुत्री, गुरुवार को द्वितीय शक्ति ब्रह्मचारिणी, शुक्रवार को तृतीय शक्ति चंद्रघंटा माता की पूजा अर्चना के बाद शनिवार को  चौथे दिन शक्ति स्वरूपा आदिशक्ति के रूप में विभूषित माता के चौथे स्वरूप कुष्मांडा माता की पूजा अर्चना भक्तों के द्वारा की गई। अपनी मंद हंसी द्वारा संपूर्ण सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।सृष्टि उत्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इन्हें आदिशक्ति के नाम से भी पुकारा गया है। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूरज के समान देदीप्यमान है। सभी सिद्धियों और निधियों को वरदान स्वरूप भक्तों को प्रदान करने वाली जपमाला के साथ चक्र, गदा,धनुष, कमंडल,कलश, बाण और कमल अपनी 8 भुजाओं में लिए होने के कारण इन्हें अष्टभुजी के नाम से विभूषित किया गया है। भक्तों को अभय का वरदान देने वाली माता कुष्मांडा शेर पर विराजमान है। मां दुर्गा के चौथे स्वरूप की उपासना से आयु ,यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है साथ ही भक्तों के समस्त रोग शोक नष्ट हो जाते हैं। अल्प भक्तों से खुश होने वाली मां के इस स्वरूप की यदि मनुष्य के मन से शरणागत होकर साधना करें तो उसे आसानी से परम पद की प्राप्ति होती है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदिशक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) नवदुर्गा कहलाती हैं। जिसमें चैत्र नवरात्र के दौरान 4 स्वरूपों की पूजा आराधना करने के बाद रविवार को भक्त माता दुर्गा के वात्सल्य की प्रतिमूर्ति पांचवें स्वरूप स्कंद माता की पूजा अर्चना करेंगे।

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