अंबेडकर नगर। प्रसंग वैसे तो अलग किन्तु प्रासंगिकता और घटनाक्रमों की तारतम्यता महाराष्ट्र की राजनीति में मची घमासान को देखते हुए गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस की चौपाइयां आजकल बिल्कुल सटीक बैठती हुई दिख रही हैं।जिनसे जहां आमजन चौपाइयों की प्रामाणिकता को देखकर तुलसी की जयकर कर रहा है तो वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा तुलसी व मानस के साथ ही साथ साधु-संतों का निरंतर किये जाने वाले अपमान को सपा के भावी भविष्य के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं कह रहे हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लंका दहन के कारण का वर्णन करते हुए लिखा कि-
साधु अवज्ञा कर फल ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा।।
कपि रूपधारी रामदूत हनुमान जी द्वारा जिस स्वर्णमयी लंका को भस्मीभूत किया गया था,वह किसी साधारण राजा या नरेश द्वारा संरक्षित न होकर त्रिकालदर्शी महापंडित और विश्रवा पुत्र सुरविजयी दशानन रावण द्वारा शाषित थी।नवग्रह जिसके यहां दासत्व या बन्दीभाव में थे।मनुष्यों की बात क्या देवताओं तक कि सामर्थ्य जबाब दे चुकी थी।रावण की प्रभुता और शक्तिसम्पन्नता कि हालत यह थी कि स्वयम नारायण को नरदेह धारण करके पृथ्वी लोक पर आना पड़ा था।ऐसी लंका भी जब धू धू कर जल रही थी तो किसी लंकावासी ने इसे हनुमान की वीरता की बात नहीं कही,अपितु सबने यही कहा कि-
हम जो कहा ये कपि नहि सोई।
बानर रूप धरे सुर कोई।।
साधु अवज्ञा कर फल ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा।।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर महावीर रावण द्वारा शासित लंका को अनाथ क्यों कहा गया?क्या लंकावासियों ने रावण के अस्तित्व व प्रभुत्व को उसके कुकर्मों की बाढ़ के चलते समाप्तप्राय मान लिया था।अतएव यहां यह जानना जरूरी है कि लंका दहन की मूल वजह क्या थी?दरअसल लंका विनाश की स्क्रिप्ट स्वयम रावण ने अपने कुकृत्यों द्वारा लिखी थी।साधु-संतों का वध,यज्ञों का विध्वंश,निरपराधों की हत्याएं व सीता रूपी जगदम्बा स्वरूप मातृशक्ति का अपमान,परमसती मंदोदरी,सचिव माल्यवान व रामभक्त विभीषण जैसे भाई का तिरस्कार आदि इतने अपराध रावण राज्य के अभिन्न अंग बन चुके थे कि उसकी तप और यज्ञ द्वारा अर्जित शक्तियां भी लंका को जलने से नहीं रोक पायीं।लंका जलती रही,रावण निरीह बनकर सबकुछ देखता रहा।कदाचित कमोवेश यही हाल आज महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री व शिवसेना के पूर्व अध्यक्ष उद्धव ठाकरे तथा मेघनाद सरीखे उनके बेटे आदित्य ठाकरे व लंका रूपी मातोश्री का भी हो रहा है।जिससे पालघर में साधुओं की पीट पीट कर नृशंस हत्या की घटना को उद्धव सरकार द्वारा दबाना,नारीशक्ति की प्रतीक कंगना रनौत के आशियाने को तोड़ना,हनुमान चालीसा के पाठ पर सार्वजनिक प्रतिबंध लगाना आदि ऐसे मुख्य कारक आज एकबार जनमानस की जुबां पर बारम्बार उभर कर आ रहे हैं कि कदाचित तुलसी जी ने साधु अवज्ञा के फल का जो वर्णन किया है,क्या उसी के चलते आज उद्धव ठाकरे के पास न सरकार रही न संगठन,न नेता रहे न निशान।अब तो उनके सामने अपने अस्तित्व व अपनी पहचान का संकट है।दूसरी तरफ कंगना रनौत की ट्वीट व अमरावती के सांसद की घोषणाएं सूरतेहाल को रामायण के लंका दहन से जोड़कर देखने को विवश करते हैं।लिहाजा उत्तर प्रदेश में रामद्रोह की जपमाला लिए सपा में वर्चस्व को प्राप्त स्वामीप्रसाद मौर्य द्वारा आएदिन साधु-संतों पर अभद्र टिप्पणियों के किया जाना,रामचरित मानस की प्रतियों को जलवाना व ब्राह्मणों को अनापशनाप कहना भी पालघर में घटी घटना से कमतर जघन्य अपराध की श्रेणी में तो नहीं आता।ऐसे में लोगों का मानना है कि सत्ता के लिए लालायित सपा की लंका इसबार किसी न किसी रूप में अवश्य जलेगी,अलबत्ता इसका पूरा श्रेय भले ही स्वामी प्रसाद व उनको मौन स्वीकृति देने वाले सपा सुप्रीमों को भले मिले।जो भी धरातल पर मौजूदा सुरतेहालों को देखने से स्थिति भी कुछ ऐसी ही बयाँ कर रही है।ब्राह्मण चाहे भले ही सपा में किसी पद या सांसद, विधायक या संगठन में जुड़े कार्यकर्ता हों, सबकेसब स्वामी प्रसाद मौर्य से नाराज और सपा सुप्रीमों द्वारा उनको दी गयी पदोन्नति से हैरत में हैं।ऋचा सिंह, रोली तिवारी मिश्रा व गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह,चिल्लूपार के पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी व अयोध्या के पूर्व विधायक तेज़ नारायण पांडेय आदि द्वारा सीधे सीधे स्वामी प्रसाद के बयानों को अपने धर्म और धर्मग्रंथों पर प्रहार बताते हुए खुलेआम विरोध करना यही जताता है कि सपा में भी अब इस मुद्दे पर दो फाड़ हैं।अतः घर के विभीषणों से भरी सपा की लंका आगामी लोकसभाई चुनावों से पूर्व जल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि नवबौद्धिष्ट स्वामीप्रसाद मौर्य द्वारा ब्राह्मणों को अपमानित करने,साधु-संतों की निंदा करने व रामचरितमानस तथा गोस्वामी तुलसीदास को अभद्र भाषा मे सम्बोधित करने के पीछे सपा की जातीय विशेषकर ब्राह्मणों को हिंदुओं की अन्य जातियों से काटने की साजिश है,कुचक्र है।सपा का थिंक टैंक भाजपा की मजबूती के मुख्य आधार ब्राह्मणों को मानता है,राम को मानता है।इसीलिए स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा इन्हीं पर जोरदार प्रहार करवाया जा रहा है क्योंकि ब्राह्मण अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से न केवल सवर्ण जातियों अपितु पिछड़ों व दलितों में भी राष्ट्रीयता व राष्ट्रभाव का बीज वपन करता रहता है,जबकि सपा की विचारधारा ही आतंकियों के पोषण की रही है।ऐसे में ब्राह्मण बसपा को स्वीकार तो कर सकता है किंतु राम मंदिर कांड में निहत्थे कारसेवकों को गोलियों से भुनवाने वाले समाजवादी दल को कत्तई स्वीकार नहीं कर सकता।लिहाजा सपा बखूबी जानती है कि ब्राह्मणों का 95 प्रतिशत मत उसके खिलाफ जाता है तो भला वो ब्राह्मणों का समर्थन भी क्यों करे।यही कारण है कि स्वामीप्रसाद मौर्य पिछले विधानसभा चुनावों में कुशीनगर की फाजिल नगर सीट बुरी तरह हारकर अपनी हार हेतु ब्राह्मणों को जिम्मेदार मानते हैं,क्योंकि फाजिल नगर में न केवल ब्राह्मणों बल्कि मौर्यों,कुशवाहों और दलितों ने भी उक्त स्वामी प्रसाद को मत देने से साफ साफ इंकार कर दिया और उपेंद्र कुशवाहा भारी अंतर से जीत गए।हाँ, ये बात अलग है कि बाद में अखिलेश यादव ने उन्हें एमएलसी बनाकर मुख्य धारा में सम्मिलित किया।जिसका कर्जा वो ब्राह्मणों,सन्तो, साधुओं,धर्मग्रंथों का अपमान कर उठार रहे हैं।वस्तुतः धर्मग्रंथों की निंदा के पीछे चाल सपा की है किंतु कारस्तानी मौर्य की,जो भी हो जनता महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टी में एकरूपता देखने लगी है।कहना गलत नहीं होगा कि आगामी चुनाव सपा की नींव हिला कर रख देगा।
देखा जाय तो महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे व उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव में काफी समानताएं हैं।दोनों के ही बापों ने कड़े सङ्घर्ष से पार्टियों का निर्माण किया और दोनों ही लोगों ने बिना एक बूंद पसीना बहाए सत्ता की प्राप्ति भी की।इतना ही नहीं दोनों ही लोग लोकतंत्र में राजशाही की तरह पैतृक हो चुके राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को भी प्राप्त किये।इसी के साथ जहां उद्धव ठाकरे के पास संजय राउत जैसे बड़बोले अधिनायकवादी राज्यसभा सांसद थे तो वहीं अखिलेश के पास स्वामी प्रसाद जैसे बड़बोले विधर्मी एमएलसी भी हैं।उद्धव के खिलाफ जहां उनके ही चचेरे भाई राज ठाकरे हैं तो अखिलेश के खिलाफ स्वयम प्रतीक व अपर्णा यादव हैं।घटनाओं और स्थितियों की तारतम्यता तो इस ओर ही इशारा कर रही हैं कि मुज्जफरनगर के दंगों के बीच सैफई में डांस का आनंद लेने वाले सपाइयों के बुरे दिनों की शुरुआत कहीं और से नहीं अपितु स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा सनातन धर्म पर प्रहार करने के साथ शुरू हो चुकी हैं।अतएव लोग तुलसीदास की निम्न चौपाई को लेकर काफी उत्सुक हैं-
ब्रह्म बान मारा नहिं मरइ।
विप्र द्रोह पावक सो जरइ।।
कदाचित इतना तो तय ही हो चुका है कि पालघर के साधुओं की हत्या,सुशांत सिंह राजपूत की हत्या,कंगना रनौत के घर का गिराया जाना औरकि दम्भ में आकर अपनों का तिरस्कार करना आज उद्धव परिवार को दरदर ठोकर खाने को विवश कर दिया है।महाविकास अघाड़ी की गाड़ी बहुत पहले से ही बेपटरी हो चुकी है,एकनाथ शिंदे हनुमान बनकर उनकी लंका का दहन करते जा रहे हैं तथा वशिष्ठ रूप में देवेंद्र फडणवीस सदैव दाएं तो सरकार की मशीनरियाँ उनके हाथ में हैं।तीस्ता सीतलवाड़ का जो हश्र मोदी विरोध में अवैध फंडिंग को लेकर हुआ,यदि उद्धव का हश्र उससे भी बुरा हो तो कोई ताज्जुब नहीं।सुशांत सिंह राजपूत केस की फ़ाइल खुलने पर ठाकरे परिवार की रही सही कमर भी टूट जायेगी, जो कि तय दिखती है।
इसप्रकार कहा जा सकता है कि निर्दोष संतों का तिरस्कार,महिलाओं के साथ बदसलूकी और बड़बोलापन आज उद्धव ठाकरे की चौपाइयों को चरितार्थ करता हुआ विनाश के पथ पर दिनोंदिन आगे ही बढ़ता जा रहा है,जहाँ से सम्भलने व उबरने का मौका कम ही है।