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रवीन्द्र नाथ तिवारी की 30वी पुण्यतिथि पर मंगलवार को आयोजित होगी श्रद्धांजलि सभा व चिकित्सा शिविर

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अम्बेडकर नगर। समाजवादी राजनीति के जनक डॉ०राम मनोहर लोहिया की वैचारिकता से सिंचित यहाँ की धरती पर 6 मार्च 1934 को पैदा हुए रवीन्द्र नाथ तिवारी का न रह जाना कम से कम उनलोगों को अक्सर अखरता रहता है जो राजनीति में “सत्याग्रह”शब्द के मायनों से वाकिफ हैं।इस जिले के ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के उनलोगों को भी स्व०तिवारी की बहुत याद आती है,जो प्रदेश की विधानसभा में होने वाली चर्चाओं और कार्यवाहियों में दिलचस्पी लेते आये हैं।जीवन पर्यंत कुजात सत्याग्रही वाला राजनैतिक चरित्र उनकी अनूठी विशिष्टता रही है,इसी विशिष्टता की बुनियाद पर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति वाले सम्बल के सहारे श्री तिवारी हर क्षेत्र के उन बड़े बड़ों से टकराते जरा भी नहीं हिचकते थे,जिनके नाम ओहदे या शोहरत के आगे सामान्यतः लोग घुटने टेक दिया करते थे या फिर नूराकुश्ती करते थे।(इंगित करो आन्दोलन,अपराधियों का राजनीतिकरण व राजनीति के अपराधीकरण के विरोध में आन्दोलन) कर अपराध और अपराधियों, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अनवरत संघर्षरत रहे  तिवारी की कमी मौजूदा दौर में इसलिए भी खास अखरन भरी हो गयी है कि अब इन सवालों पर कोरी बयानबाजी और लफ्फाजी से आगे बढ़कर कोई भी कुछ करने को तैयार नही है। मौजूदा समय मे प्रदेश  में आई अपराधों की बेतहाशा बाढ़ और इससे आम जनता में बने माहौल के बीच प्रदेश सरकार और उसके मंत्रियों पर उठ रहे उंगलियों के बावजूद मुखर विरोध का सजग प्रहरी न होना  तिवारी जी की याद तो दिलाता ही है।80 व 90 के दशक वाली विधानसभा की कार्यवाही इस बात की गवाह है तत्समय में प्रदेश स्तरीय गुंडे माफियाओं से लेकर जिला स्तरीय खराब शोहरत वालों के खिलाफ श्री तिवारी ने बार बार आवाज उठाई।तत्समय प्रदेश की राजधानी से लेकर जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीणांचलों में हुई सभाएं नज़ीर है कि शारीरिक रूप से अस्वस्थ, सुरक्षा नाम की चीज़ न होते हुए भी वह अपराधियों व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कैसे दहाड़ा करते थे।भय नाम की चीज़ उनके इर्दगिर्द नही थी।मात्र दो या तीन पार्टीजनों के साथ या अकेले भ्रमण करते रहने के बावजूद वह बड़े बड़ों से टकराया करते थे।दलीय राजनीतिक प्रतिबद्धता को भी वह वैचारिकता की ही सीमा भर मानते थे। अपराध व अपराधियों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से व विधानसभा में अपनी बात कहा करते थे।

1977 से कटेहरी विधानसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी करने के नाते उन्हें जहाँ भी जैसे भी मौका मिलता वह इस क्षेत्र की समस्या उठाते जरूर थे। जिले के बाहर भी सभा मे बोलते थे तो कटेहरी का ज़िक्र जरूर करते थे।टाण्डा विकासखण्ड क्षेत्र के ग्रामसभा भारीडीहा में 6 मार्च 1934 को साधारण से कृषक परिवार में राम अवतार तिवारी के पुत्र के रूप में जन्मे  तिवारी में समाए राजनीतिक गुण उम्र के साथ विकसित होते चले गए। साकेत महाविद्यालय फैज़ाबाद छात्र संघ अध्यक्ष और बाद में डी०ए०वी०कालेज ऑफ लॉ,कानपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष बने  तिवारी कालांतर में डॉ० राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेन्द्रदेव से प्रभावित होकर तत्समय की समाजवादी राजनीति में हिस्सेदारी शुरू कर धीरे धीरे सक्रिय होते चले गए।

तत्समय की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से वह जलालपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे लेकिन पार्टीगत पूँजी और तत्समय के कांग्रेसी नेता के आगे उनका प्रयास विफल रहा।

1977 में जनता पार्टी बनने के बाद वह कटेहरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े व जीते।इसके बाद 1985 में भी उन्होंने इसी क्षेत्र की नुमाइंदगी की। 1989 में भी वह इसी क्षेत्र से जीते और तत्समय की मुलायम सिंह यादव की मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में प्रदेश के खाद्य व रसद मंत्री बने। इस से पूर्व वह विधानसभा में उपनेता विरोधी दल,प्राक़्क़लन समिति,याचिका समिति समेत कई समितियों में शामिल रहे।दलीय स्तर पर प्रदेशयीय ओहदेदारी से लेकर राष्ट्रीय समिति तक मे रहने का उन्हें मौका मिला। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के वह बहुत करीबी साथियों में रहे।कटेहरी में उनके द्वारा कराए गए विकास कार्यों की बड़ी सूची है जिसमें मिझौड़ा का पुल, मड़हा नदी पर बना बसोहरी का पुल, गोशाईगंज-भीटी मार्ग पर मड़हा नदी पर पुल, नारायणपुर घाट का पुल, बाला पैकौली व श्रवण क्षेत्र में लकड़ी का पुल,शेरवाघाट पर पीपे का पुल,, गोशाई गंज से शेरवाघाट, मया से महबूबगंज,वन्दनपुर से अशरफपुर बरवां,महरुआ से भीटी, जैसे कई मार्गों को पिच करवाया।कटेहरी क्षेत्र में सिंचाई के लिए उन्होंने ‘इंडोडच’स्कीम लागू करवायी जिससे क्षेत्र में सैकड़ों राजकीय नलकूप लगे,बिजली समस्या के लिए कटेहरी उपक्षेत्र में विद्युत उपकेंद्र स्वीकृत करवाया।कटेहरी क्षेत्र में कई राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय,पशु सेवा उपकेंद्र,स्वास्थ्य उपकेन्द्र, नसीरपुर में डिस्पेंसरी, गोसाईंगंज में महिला चिकित्सालय की स्थापना करवायी और मिझौडा, भीटी, महरुआ,अमसिन, महबूबगंज से परिवहन निगम की बसों का संचालन करवाया। कटेहरी के विकास कार्यों को लेकर उनके द्वारा लिखी हुई चिट्ठी को नज़रअंदाज़ कर पाना जिले या प्रदेश के आला हाकिमों के लिए भी टेढ़ी खीर हुआ करता था।शारीरिक लाचारी व अतिसीमित संख्या वाले सहयोगियों के साथ चलने वाली स्थिति तथा सरकारी अंगरक्षक न लेकर भी  तिवारी बड़े से बड़े अधिकारी ,अपराधी और यहाँ तक कि न्यायपालिका तक के खिलाफ एक नहीं दर्जनों बार मोर्चा खोला  कटेहरी क्षेत्र की समस्या को हर क्षण हर मौके पर याद रखना उनकी पहचान बन गयी थी। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि रवीन्द्र नाथ तिवारी के साथ ही समाजवादी राजनीति की पहचान, सत्याग्रही आचरण,राजनीतिज्ञों में इच्छाशक्ति भी इस  जिले से उठ गई।समाजवादी शब्द सुविधावादी में तब्दील हो गया,सत्याग्रह समझौता में तथा इच्छा शक्ति के मायने बदल गए। 8 अगस्त 1993 को नियति के क्रूर हाथों ने हमसे श्री तिवारी को छीन लिया। श्री तिवारी कटेहरी के विकास पुरुष के रूप में जाने जाते हैं,औऱ ये पूरे क्षेत्र में कहाँ किस विकास योजना को लागू किया जाना चाहिए उसे भलीभांति जानते थे।कटेहरी की जनता आज भी उन्हें सच्चे जननायक,लोकप्रिय नेता व विकासपुरूष के रूप में याद करती है।

इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा व दंत चिकित्सा एवं स्वास्थ्य शिविर का आयोजन रवींद्र नाथ तिवारी स्मारक इंटर कॉलेज भारीडीहा में 8 अगस्त दिन में होगा।

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