अयोध्या। जिला चिकित्सालय के मनोविश्लेषक डा. आलोक मनदर्शन ने बताया कि रमज़ान के पवित्र आगाज़ के साथ मनोरसायनिक बदलाव होने शुरु हो जाते है जिसके सकारात्मक मनोशारीरिक प्रभाव होते हैं । नमाज़ व रोजा न केवल मनोतनाव पैदा करने वाले मनोरसायन कॉर्टिसाल के स्तर को कम करते है बल्कि मन को सुकून देने वाले हार्मोन गाबा व सेरोटोनिन तथा आत्मीयता व आनन्द की अनुभूति वाले हार्मोन एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन को बढ़ाते हैं जिससे मेन्टल हेल्थ में वृद्धि होती है।मनोसंयम के लिये ज़िम्मेदार हार्मोन सेरोटोनिन से रुग्ण मनोवृतियों पर भी अंकुश लगाने मे मदद मिलती है । रमजान के दौरान स्पिरिचुअल रिवॉर्ड-हार्मोन डोपामिन बढ़ने से मेंटल हेल्थ में इजाफ़ा होता है। इबादतगाह की सामूहिक इबादत व दुआओं से संवर्धित होने वाला मनोरसायन ऑक्सीटोसिन मूड-स्टेबलाइजर जैसा कार्य करते हुए शान्ति व सुकून का संचार करता है । एक साथ रोजा इफ्तार से दिमाग में ऑक्सीटोसिन व एंडोर्फिन हार्मोन की वृद्धि से सामूहिक मनोआनंद व उत्साह की मनोदशा परिलक्षित होती है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में मास मेंटल-यूफोरिया या जन मनो-आनन्द कहा जाता है। खैरात-जकात व असहाय की मदद व इमदाद से स्वस्थ्य मानवीय मनोरक्षा युक्ति अल्ट्रुइज्म का संचार होता है जिससे लव-हार्मोन ऑक्सीटोसिन में वृद्धि होती है जिससे तनाव अवसाद व चिंता विकार से उबरने में मदद मिलती है । रोज़ा या उपवास इंटरमिटेन्ट फास्टिंग का सटीक वर्जन है क्योकि भाग दौड़ भरी जिंदगी में बढ़ रही लाइफ स्टाइल बीमारियों मोटापा,उच्च रक्तचाप व मधुमेह के लाइफस्टाइल उपचार में 12 से 14 घंटे कैलोरी फ़ूड न खाने व सकून मनोदशा की बात मेडिकल साइंस करता है जिसे इंटरमिटेंट फास्टिंग कहा जाता है ।