अयोध्या । डाक्टर आलोक मनदर्शन ने बताया कि सेक्सुअली एक्टिव टीनेजर्स व नवयुवाओं में एचआईवी संक्रमित होने का भय लगातार बना रहता है। परन्तु यौन क्रिया का खिंचाव भी हावी होने के कारण वे एचआईवी फोबिया व सेक्सुअल आसक्ति के द्वन्द में फंसकर बार बार अपना एचआईवी परीक्षण कराने को बाध्य हो जाते हैं। द्वन्द भरी मनोदशा में मानसिक ऊर्जा क्षीण होने के कारण इसका दुष्प्रभाव पढ़ाई लिखाई, व्यक्तित्व विकास, व अन्य रचनात्मक व कैरियर निर्माण के क्रिया कलापों पर पड़ता है।
इस मनोदशा को एचआईवी फोबिया कहा जाता है। एचआईवी फोबिया से ग्रसित टीनेजर व यूथ में तनाव, हताशा व एचआईवी के लक्षणों को इण्टरनेट पर सर्च करने की विवशता भी दिखायी पड़ती है। एचआईवी फोबिया जनित अवसाद व तनाव से छद्यम् शकून् पाने के लिए ये लोग विभिन्न अन्य नशों का भी सहारा लेने लगते हैं। विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर जिला चिकित्सालय में आयोजित कार्यशाला में किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन यह जानकारी दी।
उन्होने बताया कि डॉ मनदर्शन के अनुसार टीनेजर्स व युवाओं में तर्क संगत सोचने व मनोसंयम के लिए उत्तरदायी मस्तिष्क के हिस्से सेरेब्रम् का विकास धीमा तथा कामोत्तेजना व भावोत्तेजना का केन्द्र अमिगडाला ग्रन्थि की अति सक्रियता बढ़ती यौन सक्रियता के लिए जिम्मेदार है। दूसरी तरफ मनोशांत अवस्था में सेरेब्रम द्वारा एच0आई0वी0 संक्रमण का डर पैदा होता है, जिससे शकून पाने के लिए वे बार-बार एच0आई0वी0जांच करवाने की मनोआसक्ति से ग्रसित होकर मनोदुष्चक्र में फसते चले जाते हैं।भले ही बार बार के एच आई वी जांच की रिपोर्ट नेगेटिव ही आती रहे । उन्होने बताया कि स्वस्थ मनोरंजक गतिविधियों तथा खेलकूद व अन्य रचनात्मक क्रियाओें के माध्यम से अपनी मनोउत्तेजना को संतुष्ट करना चाहिए, जिससे कि उनमें आत्म संयम व मनो ऊर्जा का सकारात्मक संवर्धन हो सके, जिससे कि द्वन्द रहित मन से अपने कैरियर पर फोकस कर सके। आवश्यकता महसूस होने पर निःसंकोच मन से मनो परामरामर्श अवश्य लें ।