अयोध्या। तीन कलश तिवारी के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस कथाव्यास जगतगुरु रामानुजाचार्य डॉ. स्वामी राघवाचार्य महाराज ने कहा कि परीक्षित सुखदेव जी से कहते हैं। प्रभु कोई ऐसी कथा श्रवण कराएं, जिससे मेरा मन और भी स्थिर हो जाए। सुखदेव महाराज पशु रूप में गज और ग्राह की कथा का श्रवण कराते हैं। गज के विपत्ति में पड़ जाने पर जब संसार का सभी साथ छूट गया। तो गज ने एक कमल पुष्प अपनी सूंड़ में लेकर प्रभु नारायण को स्मरण किया। भगवान बैकुंठ से दौड़कर आते हैं एवं कालरुपी ग्रह का संहार करते हैं। जीव किसी भी योनि में रहे। यदि परमात्मा के प्रति उसकी अनन्य भक्ति हो जाए। तो प्रभु अपने बैकुंठ को छोड़कर जीव की रक्षा के लिए दौड़ते हुए आते हैं। वामन अवतार की कथा श्रवण कराते हुए महाराज श्री ने कहा राजा बलि ने तो केवल लौकिक संपत्ति का दान प्रभु के लिए किया। लेकिन अकारण निधि करुणा वरनालय भगवान श्रीमन्नारायण प्रभु ने अपने को ही राजा बलि के द्वारपाल के रूप में समर्पित कर दिया। भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य को मानवता की शिक्षा देने के लिए प्रभु मानव रूप में इस धरा पर आते हैं भगवान श्रीराम के जैसा भ्रातृत्व प्रेम यदि हमारे जीवन में आ जाए तो इस घोर कलयुग में भी हम मनुष्य प्रसन्नता पूर्वक रह सकते हैं। भक्तजनों की रक्षा के लिए और दुष्टों के विनाश के लिए धर्म की स्थापना हेतु भगवान इस धराधाम में रामकृष्ण आदि रूपों में अवतरित होते हैं । कथा शुभारंभ के पहले पंडित शिवेश्वरपति त्रिपाठी, पंडित श्रीशपति त्रिपाठी, महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी व्यासपीठ का पूजन अर्चन कर आरती उतारी। कथा के अंत में प्रसाद वितरण किया गया। बड़ी संख्या में भक्तजन श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कर रहे थे। आए हुए अतिथियों का स्वागत रूद्रेश त्रिपाठी ने किया।