अयोध्या। रामनगरी की प्रतिष्ठित पीठ श्रीअवधबिहारी कुंज रामानंद नगर में श्रीरामकथा की वैतरणी बह रही है। नवदिवसीय अमृतमयी श्रीरामकथा में श्रद्धालुगण गोता लगा रहे हैं। अवधबिहारी कुंज के महंत व प्रसिद्ध कथाव्यास श्रीमहंत गणेश दास लश्करी महाराज ने अमृतमयी श्रीरामकथा के पंचम दिवस भक्तगणों को रसास्वादन कराते हुए कहा कि भगवान बड़े ही दयालु हैं। हमारे सनातन संस्कृति सबसे पुरानी है। यह सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया की है। सबका कल्याण चाहती है। उन्होंने कहा कि नित्य नई कामनाएं अयोध्यावासियों के मन में उठ रही है। सब की इच्छा थी कि श्रीराम राजा बन जाएं। अयोध्या इसी इच्छा में डूबी थी। भरे दरबार में महाराज दशरथ विराजमान हैं। वह दर्पण में अपना चेहरा देख रहे थे, जिसमें उन्हें अपना मुकुट टेढ़ा दिखा। उन्होंने सोचा सत्ता गिरने-बिगड़ने से पहले राम को सत्ता सौंप देनी चाहिए। दशरथ से हम सबको सीख लेना चाहिए। जब बुढ़ापा आ जाए तो शासन राम के हाथों में सौंप देना चाहिए। अवध की प्रजा ही नही बल्कि श्रीराम के दुश्मन भी उनकी प्रशंसा करते हैं। गुरूदेव वशिष्ठ के पास दशरथ गए। कहा राम को गद्दी सौंपना चाहता हूं। यह सुनकर गुरू वशिष्ठ बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा यह बहुत ही खुशी की बात है। राम के राज्याभिषेक का शुभ मुहूर्त बताइए। गुरूदेव ने कहा श्रीराम जिस दिन गद्दी पर बैठेंगे वही शुभ मुहूर्त बन जायेगा। भक्ति के लिए कोई अच्छे मुहूर्त की आवश्यकता नही होती है। भगवान की भक्ति से सारे अमंगलों का नाश हो जाता है। गुरु वशिष्ठ श्रीराम के पास गए। रामजी गुरूदेव के चरणों में दंडवत करते हैं। प्रभुता त्यागकर संत ही प्रेम कर सकते हैं। गुरूदेव ने राम को उनके राज्याभिषेक के बारे में बताया। इससे पहले सीकर राजस्थान निवासी यजमान राजेंद्र सिंह और लोकेंद्र सिंह शेखावत ने व्यासपीठ की आरती उतारी। कथा समापन उपरांत भक्तगणों को प्रसाद वितरित किया गया। बड़ी संख्या में संत-महंत, भक्तगणों ने अमृतमयी श्रीरामकथा का रसपान कर पुण्य लाभ अर्जित किया।