Home Ayodhya/Ambedkar Nagar अयोध्या प्राप्तांक के संभावित स्वआंकलन से बचें छात्र व परिजन- डा मनदर्शन

प्राप्तांक के संभावित स्वआंकलन से बचें छात्र व परिजन- डा मनदर्शन

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◆ संभावित प्राप्तांक की आसक्ति का हो सकता है मनोदुष्प्रभाव


अयोध्या। बोर्ड पेपर देकर आने के बाद अधिकांश छात्र उस प्रश्न पत्र के प्राप्तांक का स्वआंकलन तथा मित्रों से भी उनके संभावित प्राप्तांकों का तुलनात्मक आंकलन करने लगते हैं। यह भी इग्जाम फोबिया का ही एक लक्षण है जिसे  रिट्रो-इवैलुएशन सिन्ड्रोम  आर ई एस कहा जाता है।

डा आलोक मनदर्शन के अनुसार पेपर देकर आने के पश्चात छात्र का अर्धचेतन मन उस पेपर के सम्भावित प्राप्तांक से इस प्रकार आसक्त हो सकता है कि वह अति उत्साह या निराशा के मनोभाव से घिर सकता है। अति उत्साह की मनोदशा से अगले प्रश्न पत्र की प्रति लापरवाह या अतिविश्वास का भाव आ सकता है तथा निराशा का भाव मन में पलायनवादी विचार ला सकता है। छात्र में पलायनवादी मनोभाव इस प्रकार भी हावी हो सकते हैं कि परीक्षा बीच में ही छोड़ देने तक का मन बना सकता है ताकि अगली बार बेहतर परिणाम आ सकें।  परीक्षा समाप्त होते ही फिर उसका मन पश्चाताप व प्रायश्चित के सेकन्ड्री डिप्रैशन से घिरने लगता है कि उसका एक सत्र बर्बाद हो गया और अब समाज व मित्रों के समक्ष उसे शर्मिन्दगी उठानी पड़ेगी। आगे यह भी विचार चलने लगता है कि उसके संगी-साथी तो आगे निकल गये लेकिन वह अभी भी वही रूका पड़ा है और फिर उसी पाठ्यक्रम को फिर से पढ़ने के प्रति एक प्रकार की रूचि और बोरियत महसूस होने लगती है तथा अगले सत्र के लिए  अपेक्षा का बोझ और भी बढ़ जाता है।

डॉ0 मनदर्शन के अनुसार छात्र प्रत्येक पेपर के पश्चात प्राप्तांक के स्व मूल्यांकन से बचें परिजन भी छात्र से सम्भावित प्राप्तांक के बारे में ज्यादा पूछताछ न करें और यदि छात्र ऐसा करता है तो उसे भी ऐसा करने से हतोत्साहित करें।

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