अयोध्या । किशोरो में हिंसक बगावत की बढ़ती मनोवृत्ति के पीछे मोबाइल इंटरनेट लत है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में अब डिजिटल ड्रग कहा जाने लगा है क्योंकि इसके मनोदुष्परिणाम घातक नशीले पदार्थो जैसे होने लगे हैं। यह बातें केंद्रीय विद्यालय मे आयोजित सेफ यूज ऑफ दि सोशल मीडिया मनोस्वास्थ्य कार्यशाला मे जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने कही।
डॉ मनदर्शन के अनुसार सोशल मीडिया की लत के किशोरों में चार प्रमुख लक्षण होतें हैं जिसमे पहला लक्षण मोबाइल या इंटरनेट में लिप्त रहना या उसी के ख्याल में खोए रहना है। दूसरा लक्षण औसत मोबाइल समय का बढ़ते रहना , तीसरा लक्षण अपनी तलब को रोक न पाना तथा चौथा लक्षण लत पूरी न हो पाने या उसमें रोक टोक या बाधा उत्तपन्न होने पर क्रोधित या हिसक हो जाना शामिल है। इन्ही दुष्प्रभावों के मद्देनज़र भारत सरकार के राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में किशोरों द्वारा सोशल मीडिया के सुरक्षित इस्तेमाल के प्रति संवेदनशील जागरूकता कार्यक्रम को दिशा निर्देश का रुप दे दिया गया है क्योंकि इससे नशाखोरी, ऑनलाइन गेमिंग व गैंबलिंग की लत भी हो रही है जिसके आत्मघाती या परघाती परिणाम हो सकते है। यही मनोविकृति और गंभीर रूप ले लेता है जिसे अपोजिशनल डिफायन्ट डिसऑर्डर (ओ डी डी ) कहा जाता है इसमें किशोर या किशोरी बड़ो द्वारा डांट फटकार पाने पर छद्म अपमानित महसूस कर जाते है और आक्रोशित प्रतिरोध स्वरूप कुछ भी कर गजरने से गुरेज नही करते।
बचाव व उपचार:
अभिभावक व शिक्षक किशोर की गतिविधियों पर मैत्रीपूर्ण व पैनी नजर रखे। पारिवारिक वातावरण को बेहतर बनाने की कोशिश करें तथा स्वस्थ मनोरंजक गतिविधियों को बढ़ावा दें। डिज़िटल डिटॉक्स और इंटरनेट फास्टिंग या मोबाइल से दूरी बनाने की मनोउपचार तकनीक से सुधार सम्भव है।यदि इसके बाद भी किशोर गुमशुम व असामान्य दिखे तो मनोपरामर्श लेने में देरी न करें।
कार्यशाला की अध्यक्षता ए एल पालिया नें की । सभी शिक्षक व छात्र छात्राए उपस्थित रहे । धन्यवाद ज्ञापन मोहित भटनागर ने दिया।