Sunday, May 19, 2024
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ईडब्ल्यूएस आरक्षण का असल दर्द– उदय राज मिश्रा

Ayodhya Samachar

अंबेडकर नगर। सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों को अन्य अगड़ों की तरह विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु किये गए संवैधानिक प्रावधानों में आरक्षण सबसे प्रमुख व्यवस्था है। जिसके तहत अनुसूचित जातियों,जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को 50 प्रतिशत के दायरे में तथा वर्ष 2019 से सामान्य वर्ग के कोटे से 10 प्रतिशत कटौती करते हुए गरीब सवर्णों को ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के  तहत आरक्षण की संवैधानिक सुविधा प्रदान की गयी है।दिलचस्प बात तो यह है कि अनुसूचित जातियों,जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाली मलाई का विरोध आजतक उस प्रकार से किसी ने नहीं किया,जितना कि उच्चतम न्यायालय में 40 रिट याचिकाएं दाखिल करके ईडब्ल्यूएस कैटेगरी का किया गया।आखिर इस विरोध का कारण क्या है?क्या रिट याचिकाएं दाखिल करने वाले सचमुच कानून का भला चाहने वाले लोग हैं या फिर उनके दिमाग में कुछ और है,जिसे सुप्रीम कोर्ट ने आईना दिखा दिया है।अस्तु पर्दे के पीछे का रहस्योद्घाटन आवश्यक होने के साथ ही साथ सच्चाई को जनसामान्य तक पहुंचाना भी वक्त की नजाकत और समय की मांग है।

    प्रश्न जहाँतक सरकारी नौकरियों इत्यादि में अनुसूचित जातियों,जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण है,तो इसपर किसी को कोई आपत्ति नहीं है और न ही किसी सवर्ण ने अबतक कोई रिट याचिका ही दाखिल किया है।किंतु प्रश्न जब वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार ने सवर्णों के कोटे में से 10 प्रतिशत की कटौती करते हुए गरीब सवर्णों,विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े लोगों को ईडब्ल्यूएस नाम से सुविधा दी तो नाराजगी तो अगड़े सवर्णों को होनी चाहिए थी,क्योंकि उनका कोटा कम हुआ था,किन्तु खफा तो अन्य पिछड़े लोग हुए,अनुसूचित वर्ग के लोग हुए।आखिर पिछड़े वर्ग व अनुसूचित नेताओं व तथाकथित समाजसेवियों की नाराजगी की मूल वजह क्या है,यह विचारणीय है,गम्भीर चिंतन का विषय है।

   देखा जाय तो ईडब्ल्यूएस आरक्षण जारी होने से अगर कोई सबसे ज्यादा नाराज है तो वो अन्य पिछड़ा वर्ग है।जबकि ईडब्ल्यूएस आरक्षण से न तो किसी अनुसूचित जाति या जनजाति याकि अन्य पिछड़े वर्गों का लेशमात्र भी हक़ नहीं मारा गया है।फिर गरीब सवर्णों को सवर्णों की ही सीमा से कटौती करते हुए अगर कुछ दे दिया गया तो इनको पेट दर्द क्यों?वस्तुतः इस पेटदर्द का मुख्य कारण अन्य पिछड़े वर्गों द्वारा अबतक नौकरियों में तय सीमा से अधिक कब्जा की गई नौकरियों को भविष्य में न कर पाने की तड़प है।ईडब्ल्यूएस आरक्षण द्वारा उन्हें सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि अबतक जिस प्रकार से वे 27 प्रतिशत की बजाय 37 से 40 प्रतिशत तक नौकरियों को बटोर लेते थे,अब वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं,उन्हें 27 प्रतिशत से ही संतोष करना पड़ रहा है।इसप्रकार मुफ्त की मलाई खाने के आदी हो चुके अन्य पिछड़े वर्ग के व अनुसूचित समाज के तथा तथाकथित समाजसेवियों के पेट में दर्द व दिमाग में खुजली होना स्वाभाविक है।

    वस्तुतः संवैधानिक रूप से समानता व सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालनार्थ अनुसूचित जातियों,जनजातियों,अन्य पिछड़ों व वंचितों हेतु शुरू में मात्र 10 वर्षों के लिए ही आरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी थी।स्वयम डॉ भीमराव अंबेडकर भी 10 वर्षों से अधिक समय तक आरक्षण दिए जाने के खिलाफ थे किंतु आज उनके अनुयायियों को कदाचित उनका ये कथन स्वीकार्य नहीं है।यदि बाबा साहब के अनुयायियों के मन में उनके प्रति सच्ची श्रद्धा होती तो न तो वे हर 10 साल बाद आरक्षण की समयावधि को बढाने की वकालत करते और न ही सवर्णों के कोटे में से कटौती करके गरीब सवर्णों को प्रदत्त ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध ही करते।

   देखा जाय तो देश आजाद होने के पश्चात हुए विभिन्न युगान्तकारी फैसलों में यदि कुछ फैसले मील के पत्थर जैसे हैं,तो उनमें ईडब्ल्यूएस आरक्षण भी एक प्रमुख निर्णय है।जिसे लागू कर नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और दूरंदेशी का न केवल परिचय दिया है अपितु अपने सामाजिक न्याय व समानता के वायदे की असली जामा भी पहनाने का कार्य किया है।ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू होने से सवर्णों का दर्जा प्राप्त भिक्षाटन करने वाले ऊंची जातियों के लोगों व बेरोजगार निर्धनों को भी नौकरियों सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा है।जिससे असली सवर्ण लोगों का कोटा 50 से घटकर 40 प्रतिशत हो गया है,फिर भी ये वर्ग शांत है और सरकारी फैसलों का अभिनंदन करता है और दुखी वे लोग हैं,जिनका कुछ हक मारा ही नहीं गया है।

    गौरतलब है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू होने के पूर्व अन्य पिछड़े वर्गों के लोग अपनी तय सीमा 27 प्रतिशत का लाभ उठाने के साथ ही साथ सवर्णों की पचास प्रतिशत सीमा में भी 10 से 15 प्रतिशत तक घुसकर उनकी नौकरियां कब्जाते रहते थे।जिससे कहने के लिए सवर्णों को नौकरियों में 50 प्रतिशत कोटा था जबकि असलियत में यह सीमा 30 से 35 प्रतिशत से अधिक नहीं थी।इसप्रकार अन्य पिछड़े वर्ग के लोग 27 प्रतिशत की बजाय नौकरियों में 37 से 42 प्रतिशत तक सीटें कब्जा करते रहते थे।सवर्णों में जो आर्थिक रूप से पिछड़े थे वे और भी पिछड़ते जा रहे थे,उनकी स्थितियां बद से बदतर होती जा रही थीं।ऐसे में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू होने से अब ओबीसी वर्ग को अपने लिए निर्धारित आरक्षण सीमा में ही सिमट कर रहना पड़ रहा है।अब ओबीसी समुदाय अनुसूचित जातियों,जनजातियों व ओबीसी हेतु आरक्षित 50 प्रतिशत की सीमा के अंतर्गत ही जूझ रहा है।जहां से 51 वीं सरकारी नौकरी का नाम आता है तो वहीं ईडब्ल्यूएस खड़ा मिलता है।इसप्रकार ओबीसी द्वारा जो 51वीं से 60 या 65 वीं तक कि नौकरियां हथियायी जाती थीं,उनपर अब गरीब सवर्णों का असल कब्जा होने लगा है।लिहाजा ओबीसी समुदाय अगड़ों के 50 प्रतिशत में से अब एक भी सीट कब्जा न कर पाने के दर्द से परेशान है,अन्यथा जब गरीब सवर्णों को अगड़ों के कोटे में से कटौती करके ईडब्ल्यूएस दिया गया तो अनुसूचितों व पिछड़ों को परेशान होने का कोई तुक नहीं बनता।

    दिलचस्प बात तो यह है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल कुल 40 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अब जबकि अपना फैसला सुनाते हुए सरकारी फैसले को विधि सम्मत मान लिया है,तथापि यह निर्णय इस लिहाज से खास कहा जायेगा जहां तीन न्यायाधीशों ने अपने ही प्रधान न्यायाधीश से इतर निर्णय दिया।प्रायः ऐसा होता नहीं है।अब तो कहना पड़ेगा कि ईडब्ल्यूएस से जिन्हें पेटदर्द है,अब उनकी कोई दवा नहीं है।

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