अंबेडकर नगर। प्रश्न चाहे प्रतियोगी परीक्षाओं का हो याकि विभिन्न प्रान्तों विशेषकर माध्यमिक शिक्षा परिषद,उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित बोर्ड परीक्षाओं का,नकल पर नकेल का प्रश्न सदैव अनुत्तरित औरकि विचारणीय बना रहा।जबकि कहीं कहीं नकल तो नहीं हुई अलबत्ता परीक्षाओं के आयोजन से पूर्व पेपर ही आउट हो गए।ऐसे में यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि यदि नकल करने वाले विद्यार्थियों और इस कुकृत्य में संलिप्त शिक्षकों,केंद्र व्यवस्थापकों के खिलाफ अब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत केस दर्ज करके गिरफ्तारियाँ की जायेंगीं तो आखिर सम्बंधित जिलों के जिलाधिकारी,डीआईओएस और पुलिस कप्तानों सहित गुप्तचर एजेंसियों को बख्शना क्या कोई गुनाह नहीं है,यकीनन है,तो फिर शासकीय आदेशों में इनके उल्लेख न होना,विचारणीय यक्षप्रश्न है।
गौरतलब है कि परीक्षाओं में नकल किसी कैंसर से कम नहीं है।यह वो सड़ी मछली है जिसके चलते गलती कोई एक व्यक्ति या संस्थान करता है और बदनाम पूरा शिक्षक समाज होता है।अतएव नकल पर नकेल तो वक्त की नजाकत और समय की मांग तथा मेधावी व अध्ययनशील विद्यार्थियों के हितों की सुरक्षा हेतु सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है,किन्तु यदि कहीं कोई विद्यार्थी अज्ञानतावश या गलती से नकल करते हुए पकड़ा ही जाय तो क्या इस मामूली अपराध के रासुका के तहत उसे गिरफ्तार किया जाय,यह न तो उचित लगता है और न ही प्रासङ्गिक ही।अस्तु शासन और सरकार द्वारा नकल करने पर विद्यार्थियों के खिलाफ रासुका लगाए जाने का समर्थन कोई भी विद्वत समाज या समझदार व्यक्ति कदापि नहीं कर सकता।हाँ, ऐसी घोषणाओं को हौवा मानते हुए शिक्षकों व विद्यार्थियों के लिए एकप्रकार का मेंटल टॉर्चर अवश्य कहा जा सकता है।
गौरतलब है कि इस दफा उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित बोर्ड परीक्षाओं में सुचिता व पवित्रता बनाये रखने हेतु प्रत्येक परीक्षा केंद्र पर केंद्र व्यवस्थापक के अतिरिक्त एक बाह्य केंद्र व्यवस्थापक,एक स्टेटिक मजिस्ट्रेट और 10 से 12 केंद्रों पर एक सेक्टर मजिस्टेट,उपजिलाधिकारियों को जोनल मजिस्ट्रेट,डीआईओएस के उड़ाका दल व जिलाधिकारी आदि के नेतृत्व में सुपर उड़ाका दलों की भी व्यवस्था शासन ने की है।इतना ही नहीं प्रत्येक केंद्र पर चौबीसों घण्टे सशस्त्र पुलिसबलों की तैनाती के साथ ही साथ स्थानीय गुप्तचर शाखा व एसटीएफ आदि भी लगे हुए हैं,और इतने इंतजामों के बावजूद नकल रोकना यदि चुनौती बना हुआ है तो कहना गलत नहीं होगा कि फिर इसमें शासन की भागीदारी होगी,शासन व प्रशासन की मिलीभगत होगी अन्यथा नकल रोकने के लिए तमाम तामझाम की बनिस्पत केवल दृढ़ इच्छाशक्ति वाला एक अकेला केंद्र व्यवस्थापक ही सक्षम है किंतु इसे पत्राचारों, व्यवस्थाओं और जवाबदेहियों से इतना जकड़ दिया जाता है कि फिर वह भी कागजी घोड़ों पर सवार होकर अनमयस्क भाव से कार्य संचालन करने लगता है।अतएव नकल पर नकेल हेतु सर्वप्रथम प्रधानाचार्यों व शिक्षकों पर ऐतबार करना होगा,उन्हें जेल जाने की धमकियों से बाज आना होगा।
वस्तुतः नकल का प्रान्तीयकरण करने की असली हकदार पूर्ववर्ती सपा सरकारें रही हैं।जिनकी सत्ता में कभी सपुस्तक,कभी स्वकेंद्र तो कभी वित्तविहीन विद्यालयों द्वारा शिक्षाधिकारियों से मिलकर खुलेआम ब्लैकबोर्डों पर लिखकर पेपर हल किये जाते थे।जिससे वित्तविहीन व प्राइवेट संस्थानों में विद्यार्थियों जहां नामांकन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई तो वहीं अभिभावक भी अच्छे नम्बरों की लालच में अपने पाल्यों का प्रवेश राजकीय व अर्ध शासकीय सहायताप्राप्त विद्यालयों की बजाय इन्हीं वित्तविहीन विद्यालयों में करवाने में मशगूल हो गए।लिहाजा सरकारी और अर्ध सरकारी विद्यालयों के दरवाजे कमोवेश कुछ मात्रा में नकल हेतु खोल दिये गए क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो इन विद्यालयों में तालाबंदी तक कि नौबत आ गयी थी।दिलचस्प बात तो यह है कि वित्तविहीन विद्यालयों में ज्यादातर संस्थान नेताओं ,अफसरों व इनके रिश्तेदारों के हैं,लिहाज़ा यही नकल के मूल केंद्र व जड़ हैं।अस्तु इन विद्यालयों में नकल पकड़ने का साहस तो किसी जमाने में जिलाधिकारी तक नहीं कर पाते थे।नकल की यही अनुचित रीति आज शिक्षा व्यवस्था पर काला धब्बा बनकर शिक्षकों के अपमान का मूल कारण है,जिसे वर्तमान सरकार दाग मिटाने के नाम पर रासुका लगाकर लावलश्कर सहित मुस्तैद है।
देखा जाय तो वर्ष 1998 में नकल पर नियंत्रण और रोकथाम हेतु नकल विरोधी अध्यादेश तत्कालीन सरकार द्वारा प्रख्यापित किया गया था,जिसे बाद में अधिनियम का जामा भी पहना दिया गया।इस अध्यादेश में न केवल करने पर दण्ड अपितु अन्यान्य उपायों की भी व्यवस्था की गयी।ध्यातव्य है कि उक्त अधिनियम अभी भी जबकि क्रियाशील और लागू है तो फिर रासुका लगाने की प्रासंगिकता क्या?यही बात समझ से परे है।हाँ, यदि नकल होने की स्थिति में जिलाधिकारी सहित सभी सम्बंधित लोगों पर रासुका लगाई जाए तो स्वागत है अन्यथा ये अधिकारी बिगड़ैल बोल बोलते हुए अधिनायकवाद को हवा देंगें,जोकि सर्वथा अनुचित है।महत्त्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि हाई स्कूल व इंटर के प्रश्नपत्रों के बंडलों को डबल लॉक वाली अलग-अलग आलमारियों में बन्द करके मुख्य द्वार को भी सीसीटीवी और वौइस् रिकार्डरों की गतिशील अवस्था मे सीलबंद करने पर भी प्रशासन अभीतक इत्मीनान नहीं कर पा रहा है कि उसकी सारी तैयारियां मुकम्मल हो चुकी हैं,तो यह अधिकारियों के गिरते आत्मबल की परिचायक है न कि नकल रोकने की कवायद का भार।
सारसंक्षेप में इतना ही कहना उचित है कि नकल किसी भी स्थिति में बन्द होनी ही चाहिए किन्तु यदि कहीं कोई विद्यार्थी नकल करते हुए रिस्टीकेट किया जाता है तो नकल विरोधी अध्यादेश 1998 का अनुपालन होना चाहिए न कि रासुका लगाकर उसे राष्ट्रद्रोही ठहराया जाना चाहिए।अलबत्ता प्रबंधकों,प्रधानाचार्यों व सम्बंधित अधिकारियों की संलिप्तता उजागर होने पर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए।