अयोध्या। विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह कार्यक्रम के तहत अवध विश्वविद्यालय में स्थापित युवा मनोपरामर्श केन्द्र क्यु क्लब मे आयोजित मनो उपचार की चुनौतियाँ विषयक कार्यशाला में जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन ने इस बात पर चिंता व्यक्त की।
उन्होनें बताया कि लगभग 80 फीसदी मनोरोगी सामाजिक संकोच व लोक लज्जा के भय से मनोविशेषज्ञ से इलाज़ न करवाकर अंधविस्वास आधारित क्रिया कर्मों मे लिप्त होकर स्वशोषित होतें हैं। बढ़ता मनोसन्ताप युवाओं में तेजी से बढ़ रहे मनोशारीरिक बीमारियों या साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का कारण भी बनता जा रहा है। इनके लक्षण तो शारीरिक होते हैं, पर उसका मूल कारण मेन्टल स्ट्रेस या मनोतनाव होता है। पाचन क्रिया से लेकर हृदय की धड़कन तक शरीर की हर एक कार्यप्रणाली इससे दुष्प्रभावित होती है। मनोवैज्ञानिक उपचार के बिना इनका स्थायी इलाज नही हो सकता। युवाओं में तेजी से बढ़ता मधुमेह, उच्चरक्तचाप व हृदयघात से मौत इसकी बानगी है। मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेनिल हॉर्मोन बढ़ जाता है। जिससे चिंता, घबराहट, एडिक्टिव इटिंग,आलस्य, मोटापा, अनिद्रा व नशे की घातक स्थिति पैदा हो सकती है।
बचाव : मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय, क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है। चिंता व घबराहट यदि एक हफ्ते से ज्यादा महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों तथा फल व सब्जियों का सेवन को बढ़ावा देते हुए योग व व्यायाम को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन व डोपामिन का संचार होगा जिससे दिमाग व शरीर दोनों युवा बने रहेंगे। कार्यशाला की अध्यक्षता नोडल ऑफिसर डा दिनेश ने तथा संचालन पल्लव ने किया।