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व्यक्तित्व विकार है मनोरोग का आधार – शक्की व चिंतालु व्यक्तित्व है आत्मघाती

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अयोध्या। व्यक्तित्व विकार वह मानसिक प्रक्रिया है जो विचारों,भावनाओं व व्यवहार को दुष्प्रभावित तो करता ही है, आगे चलकर मनोरोग का रूप भी ले सकता है। इन विकारों में चिंतालु व्यक्तित्व विकार गंभीर श्रेणी में आता है क्योंकि  ऐसा व्यक्ति हर वक़्त अनावश्यक तनाव पैदा करने वाले विचारों से घिरा रहने के कारण चिंतित व तनावग्रस्त रहता है जिससे आगे चलकर  डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है । दूसरा गंभीर पर्सनालिटी डिसऑर्डर है शंकालु व्यक्तित्व । इसमें व्यक्ति लगातार काल्पनिक डर या भय के विचारों से घिरा रहता है तथा अपने करीबी व प्रियजनों पर भी शक वहम करने लगता है। ऐसा व्यक्ति  परिवार व समाज से कटने लगता है और धीरे धीरे पूर्ण शक्की व झक्की हो सकता है जिसे सिज़ोफ्रेनिया मनोरोग कहा जाता है। व्यक्तित्व विकारों के शुरुवाती लक्षण किशोर व युवा उम्र में ही दिखायी पड़ने लगते हैं, पर जागरूकता की कमी व स्वीकार्यता की कमी के कारण समय के साथ  इसके मनोरोग में बदलने की संभावना हो जाती है। यह बातें मनुचा पी जी कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना के कम्युनिटी कैम्प प्रशिक्षण सत्र में आयोजित पर्सनालिटी टाइप एंड मेंटल हेल्थ विषयक संगोष्ठी में डा आलोक मनदर्शन ने कही।

सलाह : अनावश्यक व बार बार चिन्ता, शक या डर महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। अतिनिद्रा या अनिद्रा, भूख में उतार चढ़ाव, असामान्य दिल की धड़कन ,पेट का ठीक न रहना, सर दर्द, थकान, चिड़चिड़ापन, अतिक्रोध, आत्मघाती या परघाती विचार जैसे लक्षण भी दिख सकतें है। स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों तथा फल व सब्जियों के सेवन को बढ़ावा देते हुए योग व व्यायाम को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन, डोपामिन व एंडोर्फिन का संचार होता है जिससे व्यक्तित्व मे सकारात्मता आती है। सेमीनार में एन एस एस कैडेट्स के सवालो व संशयों का समाधान भी किया गया। अध्यक्षता डा सुषमा तथा संयोजन डा ज्योतिमा व धन्यवाद ज्ञापन डा पूनम व डा नेहा द्वारा दिया गया।

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