रंग एवं प्रकाश के पर्व के बहाने प्रकृति भी दे रही है समाज में भाईचारा बिखेरने का संदेश
होलिका दहन एवं शब ए बारात त्योहर का अद्भूत संयोग
@ सुभाष गुप्ता
बसखारी अम्बेडकर नगर।एक तरफ बुराई एवं आसुरी शक्तियों के अंत का प्रतीक होलिका दहन व भाईचारे का प्रतीक रंगों की फुहार का पर्व होली तो दूसरी तरफ खुद के गुनाहों की माफी एवं रोशनी की जगमगाहट का पर्व शबे ए बारात पर्व एक तिथि को निश्चित कर प्राकृति भी समाज में भाईचारे एवं आपसी सौहार्द स्थापित करने का संदेश दे रही है। आवश्यकता इंसान को प्रकृति के इस संदेश व अद्भुत संयोग को समझने की है।और आपस में एक दूसरे के त्यौहारों में शरीक हो समाज में भाईचारा स्थापित कर इस देश की संस्कृत गंगा जमुनी तहजीब के मिसाल को कायम करने की है। इन दोनों पर्वों के मनाने के पीछे का निष्कर्ष उद्देश्य भी यही है कि हम अपनी गलतियों पर तौबा करते हुए सारे शिकवे गिले भुलाकर एक दुसरे के गले लगाये और एक दूसरे को एक दूसरे के पर्व की बधाई दें कर समाज में अमन एवं भाईचारा कायम कर भारत देश के मूल मंत्र विश्व शान्ति का संदेश दे।इस बार होलिका दहन एवं शबे बारात का पर्व एक साथ मंगलवार को मनाया जाएगा। होलिका दहन के दिन हिन्दू धर्म के लोग खुली जगहों पर इकट्ठा होते हुए बुराई के दहन की प्रतीक होलिका जलाते हैं। जो वातावरण को शुद्ध करने के साथ नकारात्मक ऊर्जा को भी समाप्त करने का प्रतीक माना गया है। होलिका दहन के पीछे पौराणिक एवं वैज्ञानिक मान्यताएं भी प्रचलित है। धार्मिक मान्यताओं पर गौर करें तो होलिका दहन भक्त पहलाद से जुड़ी पौराणिक कथाओं से जुड़ी एक कथा से संबंधित है। भक्त पहलाद राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद भी आसुरी प्रवृत्तियों से विमुक्त थे और नरायण के भक्ति में रमे थे। जिस कारण उनके पिता हिरणाकश्यप ने अग्नि में ना जलने का वरदान पाने वाली अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में प्रवेश करने का आदेश दिया। जिससे भक्त प्रल्हाद की मृत हो जाए। लेकिन नारायण की भक्ति के कारण प्रहलाद बच गए।और बुराई का प्रतीक होलिका जल गई। वह दिन फागुन मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को बुराई का प्रतीक होलिका दहन करने की परंपरा शुरू हुई। इस पर्व को मनाने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी बताई गई है। होलिका दहन में रेड़ के पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़ कर उसके चारों तरफ गोबर के उपले वा लकड़ी डालकर होलिका दहन किया जाता है।इसमें उबटन के साथ गेहूं, तीसी की बालियां, आम के पत्ते को जलाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति आरोग्य एवं वातावरण शुद्ध हो जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन रंगों का त्योहार होली पर्व मनाया जाता है। इस दिन रंगों की बौछार के साथ घरों में गुजिया मिठाई के साथ कई अन्य प्रकार के मिष्ठान बनाए व एक दूसरे को खिलाए जाते हैं। साथ ही अबीर गुलाल लगाकर पिछली वैमनस्यता को भूलाकर एक दूसरे को गले लगते हुए भाईचारे का संदेश देने का उद्देश्य भी इस पर्व का माना गया है। जो काफी हद तक मुस्लिम समाज के द्वारा मनाए जाने वाले शब ए बारात के पर्व से मिलता जुलता है। मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक शाबान माह की 14 तारीख को शब ए बारात का त्यौहार मनाने की परंपरा है। यह त्यौहार भी इस बार होलिका दहन के साथ मंगलवार को मनाया जाएगा। मुस्लिम समुदाय के द्वारा यह त्यौहार प्रकाश एवं इबादत की रात के साथ अपने पूर्वजों को याद करने के रूप में मनाया जाता है।शबे ए बारात के दिन घरों व कब्रिस्तानो को रोशनी से सजाया कर पूर्व में किए गए अपने कर्मों का लेखा जोखा तैयार कर आने वाले साल की तकरीर तय करने के लिए ईश्वर की इबादत पूरी रात की जाती है। इस त्यौहार पर अपनी हैसियत के हिसाब से खैरात भी करने की परंपरा है।इस त्यौहार को मनाने के पीछे यह भी मान्यता बताई गई है कि इस दिन की गई सच्ची इबादत से उनके पूर्वज कब्रिस्तान से घर आते हैं। जिसके लिए वह स्वादिष्ट मिठाई व मीठा व्यंजनों बनाकर इबादत के साथ इस त्योहार को मानते हैं। काफी हद तक इन दोनों ही त्योहारों का उद्देश्य गुनाहों के लिए तौबा करते हुए समाज में अमन,चैन स्थापित कर रंग व रोशनी बिखरते हुए हुए गरीबों की मदद एवं भाईचारे का संदेश देना ही है।जिसका साथ इस बार भी प्रकृति इन दोनों त्योहारों की तिथि एक कर बखूबी निभा रही है।