◆ ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास की मूर्ति के अनावरण में बांग्लादेश की घटना पर सीएम हुए मुखर
◆ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भंडारे में ग्रहण किया प्रसाद
अयोध्या। आज दुनिया की तस्वीर हम सभी देख रहे हैं। भारत का आस-पड़ोस जल रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। तब भी हम इतिहास के तथ्यों को ढूंढने का प्रयास नहीं कर रहे कि वहां ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्यों पैदा हुई है। जो समाज इतिहास की गलतियों से सबक नहीं सीखता है, उसके उज्ज्वल भविष्य पर भी ग्रहण लगता है। सनातन धर्म पर आने वाले संकट के लिए फिर एकजुट होकर कार्य करने और लड़ने की आवश्यकता है। राम मंदिर का निर्माण मंजिल नहीं, पड़ाव है। इसे आगे भी निरंतरता देनी है। सनातन धर्म की मजबूती इन अभियानों को नई गति देती है। ये बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही।
उन्होंने बुधवार को दिगंबर अखाड़ा में श्रीराम जन्मभूमि न्यास के पूर्व अध्यक्ष ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास की 21वीं पुण्यतिथि पर उनकी मूर्ति का अनावरण किया। सीएम ने यहां पूजन-अर्चन व पौधरोपण भी किया। इसके पश्चात सीएम ने साधु-संतों संग भंडारे में प्रसाद भी ग्रहण किया।
ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास ने रामजन्मभूमि आंदोलन को जीवन का मिशन बनाया
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त पूज्य ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास का पूरा जीवन रामजन्मभूमि के लिए समर्पित रहा। उन्होंने इस आंदोलन को जीवन का मिशन बनाया। संतों का संकल्प एक साथ एक स्वर में बढ़ा तो अयोध्या में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। मेरा सौभाग्य है कि 21 वर्ष बाद ही सही, उनकी प्रतिमा के स्थापना का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।
गोरक्षपीठ व दिगंबर अखाड़ा एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते थे
सीएम योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ गोरखपुर और दिगंबर अखाड़ा अयोध्या 1940 के दशक से एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते थे। जब रामचंद्र दास महराज बचपन में अयोध्या धाम आए थे, तबसे उनका लगाव गोरक्षपीठ से था। तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में रहकर रामजन्मभूमि आंदोलन आगे बढ़ा। 1949 में रामलला के प्रकटीकरण के साथ ही तत्कालीन सरकार द्वारा प्रतिमा को हटाने की चेष्टा के खिलाफ न्यायालय में जाने और वहां से सड़क तक इस लड़ाई को बढ़ाने का कार्य गोरक्षपीठ व पूज्य संत परमहंस रामचंद्र दास जी महराज ने मिलकर किया। इसी का परिणाम है कि पूज्य संतों की साधना फलीभूत हुई और 500 वर्षों का इंतजार समाप्त हुआ। अयोध्या में रामलला विराजमान हुए। देश और दुनिया में अयोध्याधाम फिर से त्रेतायुग का स्मरण कराता दिख रहा है। यहां के संतों का गौरव बढ़ा और अयोध्या को नई पहचान मिली।
संतों ने बातचीत से समस्या का हाल निकालने का भी किया था प्रयास
सीएम योगी ने कहा कि जिस रामजन्मभूमि के बारे में लोग कहते थे कि अगर फैसला राम मंदिर के पक्ष में हुआ तो सड़कों पर खून की नदियां बहेंगी। संतों ने बातचीत से समस्या का हल निकालने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन जब बातचीत के रास्ते समाप्त हो गए और सरकार की हठधर्मिता आड़े आने लगी तो पूज्य संतों ने लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष का रास्ता चुना। इसके उपरांत देश के अंदर मजबूती से आंदोलन आगे बढ़ा। मामला न्यायालय में गया तो भाजपा की डबल इंजन सरकार बनने के उपरांत समस्या के समाधान का मार्ग निकला।
स्मरणीय बन गई पांच अगस्त और 22 जनवरी की तिथि
सीएम योगी ने कहा कि 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में पीएम मोदी ने अयोध्या में उच्चतम न्यायालय के आदेश के क्रम में भव्य मंदिर निर्माण कार्य का शिलान्यास व भूमि पूजन किया। 22 जनवरी 2024 को रामलला फिर से अयोध्या धाम में विराजमान हुए। यह तिथियां न केवल सनातन धर्मावलंबियों के लिए स्मरणीय बन गई। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा जब 22 जनवरी 2024 को रामलला विराजमान हुए तो पूज्य संतों की आत्मा को शांति प्राप्त हुई। उन्हें भी वर्तमान पीढ़ी पर विश्वास हुआ होगा कि यह सही दिशा में कार्य कर रही है। उनका आशीर्वाद पीएम मोदी को प्राप्त हुआ।