अयोध्या। एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर जागरूकता विषयक कार्यशाला जिला चिकित्सालय के मनोरोग विभाग में आयोजित की गई। डा आलोक मनदर्शन व डा बृज कुमार ने बताया कि एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसार्डर (एएसपीडी), जैसा कि नाम से ही जाहिर है, ऐसे लोग समाज के लिये छुपे रुस्तम खतरा होते है। ये कपटी, परपीड़क, आक्रामक,जालसाज, दुस्साहसी, निर्दयी और ग्लानिहीन होते हैं। बनावट व दिखावा कर लोगों मे अपना दबदबा बनाकर उनका फायदा उठाने, फसाने , ब्लैक मेल कर ठगने में माहिर होते हैं। सरकार या संस्थान को भी बड़ा चूना लगाने से गुरेज नही करते । एक्सपोज़ होने या सजा पाने के बावजूद फिर ऐसे कृत्यों पर उतारु हो जाते है , क्योंकि इनमें पश्चाताप या अपराधबोध न के बराबर होता है और कुकृत्य इनका नशा होता है। इस विकार के शुरुवाती लक्षण किशोरावस्था से ही विभिन्न अपचारी कृत्य के रूप में दिखायी पड़ सकते है तथा इनके अभिभावकों के ऐसे व्यक्तित्व विकार से ग्रसित होने व बचपन क्रूरता व अभाव से ग्रसित होने की प्रबल संभावना होती है। महिलाओं की तुलना मे ऐसे पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है ।
मनोचिकित्सक डा आलोक मनदर्शन ने बचाव के लिए बताया कि एक अनुमान के मुताबिक ऐसे लोग समाज मे दो से चार फीसदी हो सकते है।आये दिन ऐसे लोगों के कृत्य समाचार माध्यमों से पता चलते रहते है । अब तो ये लोग टेक्नॉलॉजी से लैश होकर साइबर ठगी व साइबर अरेस्ट भी कर रहें है। हालांकि ऐसे लोगों के शुरुवाती हाव-भाव बड़े प्रभावित करने वाले होते है, पर यहीं सतर्क व सावधान होने की जरूरत होती है क्योंकि प्रलोभित या पैनिक करने मे ये माहिर होते होते है। साइबर ठगी के नित नये तौर तरीके इनके शातिर दिमाग से निकलकर जनमानस के मनोआर्थिक आघात व अवसाद का कारण बन रही है वहीं दूसरी तरफ पुलिस व सुरक्षा एजेंसियो को कठिन चुनौती पेश कर रहें हैँ । डिजिटल दुनिया के दौर में इन अपराधों का दायरा असीमित हो चुका है। यह मनोविकार साइकोपैथिक या सोशियोपैथिक या डिस्सोसल पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी कहलाता है।