Home Ayodhya/Ambedkar Nagar अयोध्या ब्रेन-वाशिंग: आतंक की फैक्ट्री का मनोवैज्ञानिक सच, पहलगाम हमले ने खोली आंखें

ब्रेन-वाशिंग: आतंक की फैक्ट्री का मनोवैज्ञानिक सच, पहलगाम हमले ने खोली आंखें

0

अयोध्या। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकी घटना ने आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक पहलू की ओर गंभीर ध्यान आकर्षित किया है। विशेषज्ञों के अनुसार आतंकवादी बनने के पीछे अक्सर सुनियोजित ब्रेन-वाशिंग होती है, जो व्यक्ति के सोचने-समझने की क्षमता को पूरी तरह बदल डालती है।

डा आलोक मनदर्शन

मनोचिकित्सक डॉ. आलोक मनदर्शन ने जागरूकता वार्ता में बताया कि ब्रेन-वाशिंग शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी पत्रकार एडवर्ड हंटर ने किया था। इसे ब्रेन-ट्रैप, मेंटल-हाइजैक जैसे नामों से भी जाना जाता है। इसमें लक्षित व्यक्ति की सोच, विश्वास और निर्णय क्षमता को इस कदर री-प्रोग्राम कर दिया जाता है कि वह जघन्य कृत्य करने के लिए भी खुद को सही मानने लगता है।

डॉ. आलोक ने बताया कि धार्मिक उन्माद, बॉर्डरलाइन या एंटीसोशल पर्सनालिटी विकार, अवसाद, उन्माद तथा मादक द्रव्यों के सेवन से ग्रस्त युवा ब्रेन-वाश के सबसे आसान शिकार होते हैं। नशे से ब्रेन-रिवार्ड हार्मोन डोपामिन का स्तर असामान्य बढ़ जाता है, जिससे व्यक्ति का आत्म-नियंत्रण और विवेक क्षीण हो जाता है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म अब मास ब्रेन-वाशिंग का त्वरित और वैश्विक माध्यम बन चुके हैं। फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में भी आम युवाओं को ब्रेन-वाश कर आतंकी बनाए जाने का चित्रण प्रभावशाली ढंग से किया गया है।

ब्रेन-वाश के लक्षणों में व्यवहार में अचानक असामान्य बदलाव, नयी विचारधाराओं के प्रति कट्टर लगाव, परिजनों से दूरी बनाना, सीक्रेट ग्रुप्स से संवाद और आलोचनात्मक सोच की कमी प्रमुख हैं।
बचाव के उपायों में स्वविवेक का प्रयोग, लालच से सतर्कता, अनजान डिजिटल संपर्कों से दूरी और मनोद्वंद की स्थिति में समय पर मनोपरामर्श लेना जरूरी है।

डॉ. आलोक ने कहा कि जागरूकता और सतर्कता ही ब्रेन-वाशिंग के इस अदृश्य खतरे से बचाव का सबसे बड़ा हथियार है।

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version