Saturday, November 23, 2024
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भगवान ऋषभदेव के जन्मोत्सव पर दिगंबर जैन मंदिर से निकलेगी शोभा यात्रा

Ayodhya Samachar

अयोध्या। भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे। उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। इसी वंश में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का भी जन्म हुआ। इस प्रकार प्रभु श्रीराम भगवान ऋषभदेव के पूर्वज हुए। भगवान ऋषभदेव के पुत्र का नाम चक्रवर्ती भरत था, जिनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। उक्त बातें जैन समाज की सर्वोच्च गणिनी प्रमुख साध्वी ज्ञानमती माता ने कही। वह बुधवार को रायगंज स्थित दिगंबर जैन मंदिर में मीडिया से मुखातिब थी। उन्होंने बताया कि 16 मार्च दिन गुरूवार को जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म जयंती महोत्सव अयोध्या तीर्थ क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाएगा। इस अवसर दिगंबर जैन मंदिर से विशाल शोभायात्रा निकलेगी। जो तुलसीनगर जैन मंदिर तक जायेगी। वहां भगवान का अभिषेक-पूजन होगा। पुनः शोभायात्रा अपने गंतव्य को वापस लौटेगी। प्रतिवर्ष भगवान ऋषभदेव का जन्मोत्सव हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है। उनका जन्म चैत्र कृष्णपक्ष की नवमी तिथि पर हुआ था। इसी तिथि पर उनका जन्म जयंती महोत्सव मनाया जाता है।

साध्वी ज्ञानमती माता ने कहा कि इक्ष्वाकु वंश आदिमय रहा है। प्रारंभ में सभी भगवान ऋषभदेव की परंपरा से ही थे। उन्होंने मानव मात्र की परंपरा और सारे धर्मों को भी संस्कारित किया। पहले सिर्फ जैन धर्म ही था। उसका उद्देश्य अहिंसा परमो धर्मः का रहा। अर्थात अहिंसा ही परम धर्म है। जहां पर सर्व धर्म का समन्वय है। वहां कभी टकराव नही है। हिंसा कभी धर्म नही हो सकता है। जैन धर्म ने हमेशा हिंसा का विरोध किया है और करता रहेगा। धर्मनिरपेक्ष समाज कभी किसी को बाधा ना पहुंचाए। यही हम सबका उद्देश्य है। सभी लोग अपने-अपने धर्म का पालन करें। जहां अहिंसा परमो धर्माः व सर्व धर्म है। वही सबसे बड़ा धर्म है। अहिंसा से पर्यावरण की शुद्धि एवं विश्व में शांति होगी। जो हिंसा से कभी नही हो सकती है। अगर देश में शांति होगी, तो वह सिर्फ अहिंसा से। पर्यावरण की शुद्धि होगी, तो अहिंसा से। किसी जीव को ना मारना ही अहिंसा है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि सभी समाज पर कोई कंट्रोल नही कर पायेगा। यहां तक कि शासन भी नही। हम सिर्फ उपदेश देते हैं। उसका अनुसरण सबको करना चाहिए। वर्तमान में जो संघर्ष, मतभेद व टकराव आपस में है। वह भगवान ऋषभदेव व चक्रवर्ती सम्राट भरत के समय में नही था। हमारा शासन भी इसमें समर्थ नही हो पा रहा है। हम अपनी अहिंसा की बात को जन-जन तक पहुंचायें। यही हमारा लक्ष्य है अहिंसा परमो धर्मः। इस मौके पर जगद्गुरू पीठाधीश रविंद्र कीर्ति स्वामी व प्रतिष्ठाचार्य विजय कुमार मौजूद रहे।

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