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कल्पना लोक में जीने वाले स्किज़ोफ्रिनिया से होते है ग्रसित, खुद को नहीं मानते मनोरोगी

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अयोध्या। विश्व स्किज़ोफ्रिनिया दिवस’- 24 मई, पूरी दुनिया में इस गंभीर मनोरोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाने लगा है। ऑस्कर अवार्ड जीतने वाली फिल्म ए ब्यूटीफुल माइंड नोबल पुरस्कार विजेता जान नैश नामक अर्थशास्त्री के जीवन पर आधारित है जो स्किज़ोफ्रिनिया नामक मानसिक रोग के शिकार हो गये थे। कुछ नामचीन हस्तिया जिन्होंने विज्ञान,कला,साहित्य आदि में अदभुत प्रतिभा का लोहा मनवाया, उन्हें भीआगे इसी बीमारी का शिकार होना पड़ा। लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि हर एक असाधारण व्यक्ति स्किज़ोफ्रिनिया से ही ग्रसित हो,बल्कि यह मनोरोग किसीभी आम या ख़ास को हो सकता है।
स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित व्यक्ति के मन में एक या अनेक झूठे विश्वास या भ्रान्ति इस गहरे तक बन जाती है कि अनेको सही तर्क दिए जाने पर भी वह अपने काल्पनिक विश्वासों को असत्य नहीं मानता है। ऐसे रोगी अपने दंपत्ति या प्रेमी की निष्ठां के प्रति भी शक या वहम बना सकता है। ऐसे मरीज़ खुद से बाते करना,हँसना,क्रोधित होना,अजीबो-गरीब मुद्रा बनाना जैसी असामान्य हरकते करने लगते है। करीबियों व परिजनों से भी खतरा महसूस करने लगता है । कर्मकाण्ड, तंत्र-मंत्र आदि शुरू कर सकता है। घर छोड़ कर भाग सकता है या खुद को कमरे में कैद कर सकता है। यह बातें मनो परामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने जिला चिकित्सालय मे आयोजित कार्यशाला में कहीं ।
डॉ.मनदर्शन ने बताया कि ऐसे मरीजो की अपनी मनोरुग्णता के प्रति अंतर्दृष्टि लगभग शून्य होती है जिससे वे खुद को मनोरोगी मानने को तैयार नहीं होते है । मरीज के शुरूआती लक्षणों को पहचान कर परिजनों द्वारा समुचित मनोउपचार कराना चाहिए तथा उनमे आत्मविश्वास व दूसरो पर विश्वास करने को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे स्वस्थ अंतर्दृष्टि एवं कल्पनालोक से इतर व्यवहारिक जीवन जीने के कौशल का विकास हो सके। मरीज से उनके असामान्य व्यवहार की प्रतिक्रिया सकारात्मक ढंग से करना चाहिए ।

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