अम्बेडकर नगर। प्रदेश सरकार भले ही व्यापक लोकहित व जनहित में नये नियमों को प्रख्यापित करे या पुराने नियमों में संशोधन करे, किन्तु अयोध्या मण्डल अंतर्गत शिक्षाधिकारियों द्वारा नियमों से इतर जीपीएफ पत्रावलियों पर आपत्ति लगाकर शिक्षकों व कार्मिकों का उत्पीड़न किया जा रहा है। यदि अतिशीघ्र इसे बंद नहीं किया गया तो राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ अन्याय के प्रतिकार हेतु विवश होगा। ये उद्गार शनिवार को महासंघ के मण्डलीय अध्यक्ष उदयराज मिश्र ने व्यक्त किये।श्री मिश्र उक्त प्रकरण पर जिला विद्यालय निरीक्षक से द्विपक्षीय वार्ता कर रहे थे।
ज्ञातव्य है उप शिक्षा निदेशक,नवम मण्डल,अयोध्या आनन्दकर पांडेय द्वारा उनके कार्यालय में जीपीएफ अग्रिम,स्थायी और अस्थायी दोनों ही प्रकरणों पर बारम्बार यह आपत्ति लगाई जा रही है कि तदर्थ शिक्षक और कर्मचारियों की जीपीएफ कटौती नहीं हो सकती,औरकि यदि की गयी है तो अविधिक है, भले ही ऐसी नियुक्तियों का विनियमितीकरण हो चुका हो।दिलचस्प बात यह है कि 1987 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जीपीएफ नियमावली में संशोधन करते हुए यह व्यवस्था की है कि संविदा कार्मिकों व पेंशनरों की पुनर्नियुक्ति को छोड़कर सभी स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों के वेतन से न्यूनतम 10 प्रतिशत कटौती बतौर जीपीएफ की जाएगी।वर्तमान में यह व्यवस्था 01 अप्रैल 2005 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों/कार्मिकों पर प्रभावी है।
गौरतलब है कि उक्त संशोधन के नियम चार में स्प्ष्ट उल्लेख होने के बावजूद जीपीएफ पत्रावलियों पर आपत्ति शिक्षकों व कार्मिकों के उत्पीड़न व दोहन का कारण बनती है।
आज की वार्ता के बाबत उक्त शिक्षक प्रतिनिधि द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक जिविनि ने तत्काल पटल सहायक को निर्देशित किया कि भविष्य में अकारण आपत्ति न लगने पाये।जिविनि ने मण्डलीय अध्यक्ष द्वारा उपलब्ध कराए गए शासनादेश की प्रतियों को फौरन दाखिल दफ्तर करने का भी आदेश पटल सहायक को दिया।