Home Ayodhya/Ambedkar Nagar अम्बेडकर नगर राष्ट्रीयता के विकास में राजनीति का जहर

राष्ट्रीयता के विकास में राजनीति का जहर

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@उदय राज मिश्रा


अंबेडकर नगर। धर्म जहाँ मानव को नैतिकता आधारित जीवनमूल्यों को अंगीकृत करते हुए सच्चरित जीवनयापन की शिक्षा देते हैं वहीं राजनीति का मुख्य ध्येय राष्ट्रनिर्माण के साथ-साथ राष्ट्रीयता का विकास करने में सहायक होना होता है। किंतु जाति रूपी नैया में धर्म रूपी पतवार के सहारे चुनाव रूपी वैतरणी पार करने को उद्यत दिखती सियासत जहाँ महज निहित स्वार्थों की प्रतिपूर्ति का जरिया बनती जा रही है,वहीं समाज में दिनोंदिन बढ़ते वैमनस्य राष्ट्रीयता के विकास में सबसे बड़े बाधक हैं।कहना अनुचित नहीं होगा कि राष्ट्र के समक्ष उपस्थित आज सबसे बड़े खतरों में जातीयता और धर्म आधारित राजनीति ही है।

ब्रिटिशकाल में जहाँ 1857 की क्रांति का उल्लेख भी कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी प्रयोग किये जाने को लेकर उस समय के विद्रोह का मुख्य कारण माना जाता है।वहीं मुगलकाल से लेकर अबतक हिंदुस्तान की सियासत किसी न किसी रूप में जाति और धर्म से प्रभावित अवश्य रही है।1947 में भारत का विभाजन भी धर्म आधारित राजनीति का ही दुखद परिणाम था।यही कारण था कि उस समय अंगीकृत भारतीय संविधान मि मूल प्रस्तावना में सेकुलर शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था।भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना में सेकुलर शब्द 42वें संविधान संशोधन द्वारा आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा जोड़ा गया है।

प्रश्न जहाँ वर्तमान राजनैतिक विचारधाराओं और राष्ट्रीयता का है तो कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय राजनीति कहने को चाहे जितना कहे कि यहां के सियासी दल धर्मनिरपेक्ष हैं,हकीकत में नेताओं के हर चुनाव औरकि प्रत्याशियों के टिकट वितरण तक भी जातिगत मतदाताओं की संख्या और धर्माधारित प्रत्याशियों के आधार पर किया जाता है।

राष्ट्रीयता को असल चोट किसी और से नहीं अपितु राजनीति से ही लगती दिख रही है।समाजवादी पार्टी को यादव,मुस्लिम और पिछड़े समाज का ध्रुवीकरण चाहिए तो भाजपा को अगड़ों और पिछड़ों का भरोसा है।बसपा विशेषकर दलितों औरकि एक जाति विशेष की लम्बरदार बनती है।बंगाल में ममता को रोहिंग्यों से प्यार है,केजरीवाल तो तुष्टिकरण व पुष्टिकरण के लम्बरदार ही बनते जा रहे हैं।दिलचस्प बात तो यह है कि ईमानदारी और स्वच्छ प्रशासन के नाम पर दिल्ली व पंजाब में काबिज आप के मंत्री जेल में रहने के बावजूद आजतक पदच्युत नहीं किये गए।शराब कांड में जहां मनीष शिशोदिया पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है तो आप नेता संजय सिंह का भी पूर्व का इतिहास कुछ खास अच्छा नहीं है।अलबत्ता सच कहने वाले कुमार विश्वास जरूर आप से दूर कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में चुनावों का समर जिसतरह जिन्ना को मैदान में उतारकर लड़ा गया उसी तर्ज पर ओम प्रकाश राजभर को राजभरों का ठेकेदार और ओवैसी को मुसलमानों का मसीहा बताते हुई कभी इस दल तो कभी दूसरे दल में आसरा खोजते आते हैं या फिर उनसे गठबंधन करते हैं।चचा शिवपाल तो कब नाराज होकर प्रसपा पुनर्जीवित कर देंगें और कब विलय करेंगें, इसकी गारंटी तो स्वयम वे भी नहीं ले सकते।निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर धनाढ्यों को टिकट वितरित करना अब सपा और बसपा तथा आप का मुख्य पेशा हो गया है।।आखिर इन नेताओं में समाजवादी और राष्ट्रवादी कौन है?इसकी परख करनी बड़ी मुश्किल है।

राष्ट्रीयता कोई वस्तु नहीं अपितु बीज रूपी महामंत्र है।जैसे बीज के अंदर स्वयम में फल,फूल,जड़,तना,शाखा,पत्तियां इत्यादि सुषुप्त होते हैं और खाद,पानी तथा उर्वर भूमि पाकर बीज से ही विकसित होते हैं।उसीप्रकार राष्ट्रीयता भी राष्ट्र की एकता का बीजमन्त्र है,जो नागरिकों के हृदय में राष्ट्र के प्रति समर्पण और एकदूसरे से प्रेमपूर्ण व्यवहार से विकसित होती है।कष्ट इस बात का है कि सम्प्रति सियासत जाति से जाति को और धर्म को धर्म से लड़ा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है।जिससे गद्दी चाहे जिसे मिले किन्तु नुकसान तो राष्ट्र का और राष्ट्रीयता का ही हो रहा है।कदाचित देश में आयेदिन होने वाले अपराधों का एक बड़ा कारण यह भी है।जिससे राष्ट्र विरोधी ताकतों को भी सर उठाने का मौका मिलता है।

भारतीय समाज आज जिस प्रकार से अगड़ों,पिछड़ों और दलितों तथा अल्पसंख्यकों में विभाजित है,वैसा पहले कभी भी नहीं रहा।सियासत की आंच से घरों में जलते चूल्हे अब वैसी ही रोटियां सेंक रहे हैं,जैसी सियासत चाहती है।एक जाति को दूसरी जाति पर और एक धर्म को दूसरे धर्म और ऐतबार नहीं दिखता।लिहाज़ा जातीय व धार्मिक नेताओं का राजनीति की नैया पार लगाने के लिए सियासत में बढ़ता प्रचलन राष्ट्रीयता के लिये विषपान से कम नहीं है।किसी कवि ने कहा भी है

यथा-

रहनुमा देश के गुल खिलाने लगे।

ये जनता से जनता लड़ाने लगे।।

इनको लोगों से दुखदर्द मालूम नहीं-

ये तो अपनी गरीबी मिटाने लगे।।

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