◆ सप्तमी तिथि को खुलने वाले सभी पूजा पंडालों की तैयारियां अंतिम चरण में
◆ शरादीय नवरात्रि पर विशेष
@ सुभाष गुप्ता
बसखारी अंबेडकर नगर। प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारी, तृतीय चंद्रघंटा, चतुर्थ कूष्मांडा,पंचम स्कंदमाता एवं शुक्रवार षष्ठी तिथि को कात्यानी माता के बाद शनिवार को नवरात्रि की सप्तमी तिथि को कालरात्रि माता की पूजा आराधना के साथ अष्टमी महागौरी एवं नवमी को सिद्ध दात्री माता की पूजा आराधना के लिए पंडालों को अंतिम रूप देने का कार्य अंतिम चरण में है।क्षेत्र में नवरात्रि महोत्सव एवं दूर्गा माता के दर्शनों के लिए कुछ पूजा पंडालो को नवरात्रि के पहले दिन खोल दिया गया था।वहीं बरसों से चली आ रही परंपरा का निर्वाहन करते हुए पूजा समितियां के द्वारा क्षेत्र में सजाए गए सभी पंडालो को नवरात्रि की सप्तमी तिथि को पूजा आराधना के लिए खोला जायेगा।जिसकी सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। नवरात्रि के 6 दिन की समाप्ति के बाद सप्तमी तिथि शनिवार को भक्तों के द्वारा माता दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि माता की पूजा आराधना का विधान शास्त्रों में वर्णित है। कालरात्रि माता को नव दुर्गा का सातवां स्वरूप बताया गया है। जो दैत्य,दानव, भूत आदि असुरी शक्तियों के विनाश एवं भक्तों के लिए शुभ फलदायक बताया गया हैं। भक्तों को शुभ फल देने करण माता को शुभंकरी भी कहा जाता है।गले में मुंड माला, खुले केश, तीन नेत्र, घने अंधेरे की तरह एकदम गहरे काले रंग के रूप मे रौद्र और विकराल रूप धारण किए हुए कालरात्रि माता असुरों का संहार करने के लिए अपने एक हाथ में लोहे का कांटा और एक हाथ में खड़क तो भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए एक हाथ अभय मुद्रा में व एक हाथ वर मुद्रा किये हुए गंधर्व पर विराजमान है। पौराणिक कथाओं अनुसार मां दुर्गा ने रक्त बीज नामक शक्तिशाली दुष्ट का संहार करने के लिए कालरात्रि का रूप धारण किया था। रक्त बीज के आतंक से मनुष्य और देवता दोनों परेशान थे।रक्तबीज को ऐसा वरदान प्राप्त है था कि उसका रक्त धरती पर गिरते ही उसी के समान दूसरा दैत्य तैयार हो जाता था। देवाधिदेव महादेव जानते थे कि उसका वध पार्वती ही कर सकती हैं। देवताओं व मनुष्यो की प्रार्थना पर उन्होंने पार्वतीजी से अनुरोध किया, तब माता पार्वती ने शिवजी के अनुरोध को स्वीकार करते हुए अपनी शक्ति और तेज से काल रात्रि को उत्पन्न किया। और मां ने अपने इस स्वरूप में रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी कर उसका अंत कर दिया। गुड़ व गुंड से बनी हुई चीजो का भोग लगाकर सच्चे मन से की गयी पूजा अर्चना से माता प्रसन्न होती हैं ।और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।