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कचरे की ढेर में दो वक्त की रोटी तलाश रहे बच्चे, जिन हाथों में होनी थी किताब उन हाथों में है बोरा

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आलापुर अंबेडकरनगर। जिन हाथों में किताब-कॉपी होनी चाहिए, वो बच्चे दो जून की रोटी के लिए कूड़ा बीन रहे हैं। पीठ पर किताबों की बोझ नहीं बल्कि प्लास्टिक बोरी में रद्दी और गंदगी रहती है। ये बच्चे होश संभालते ही कूड़े की ढेर से ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं। जबकि गरीब बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जहांगीरगंज बाजार में दो भाई छोटू और सौरभ गुरूवार को स्कूल जानें के बजाय हाथो में बोरी लिए कूड़ा बीन रहे थे। पूछनें पर पता चला कि ये दोनों मामपुर, जहांगीरगंज बाजार,के निवासी हैं। बात करने पर बच्चों ने बताया कि पापा मज़दूरी करते हैं, रोज़ हमें खाना भी नहीं मिल पाता है। पैसे की वजह से हम लोग पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। किताब-कॉपी के लिए बहुत पैसा चाहिए इसलिए हम लोग रोज कूड़ा बीनते हैं।

देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। छः से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा का मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया लेकिन अब भी बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल से दूर हैं। हालाकि यह फोटो बानगी मात्र है जिले के दर्जनों स्थानों पर ऐसे बच्चें कूड़ा बीनते मिल जायेंगे। इनको मुख्य धारा में लाने के लिए जिम्मेदारों वा विभिन्न सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। भारत की क्रांतिकारी मजदूर पार्टी के पार्टी के मित्रसेन ने मांग की कि इस तरह के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सरकार प्रभावी कदम उठाए।

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