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मासूमों का यौन शोषण करने में परिचितों की रहती है अधिकता, गुड-टच व बैड-टच है मासूमों के लिए जरूरी पाठ

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◆ बाल-यौनशोषण का होता है व्यक्तित्व पर असर


अयोध्या। जिला चिकित्सालय के मनोचिकित्सक डा आलोक मनदर्शन ने “बाल-यातना के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस“ 4-जून की पूर्व संध्या पर बताया कि बच्चो से लाड-प्यार स्वस्थ मनोक्रिया है,पर कुछ लोग प्यार-दुलार के बहाने मासूम यौन-शोषण से आनंदित होते हैं। यह रुग्ण-मनोवृत्ति  पीडोफिलिया  तथा ऐसे लोग पीडोफिलिक  कहलाते है।

डा आलोक मनदर्शन

एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश मासूम यौन- शोषण करीबियों, परिचितों व रिश्तेदारों द्वारा किये जाते हैं। डॉ. मनदर्शन के अनुसार यौन- शोषित मासूम मनोआघात से ग्रसित हो सकता है जिससे घटना-विशेष की भयाक्रांत-स्मृतियों से उसके व्यवहार में डर, चीखना-चिल्लाना,घर से बाहर न निकलना, स्कूल व पढ़ाई आदि से कटना व बेहोशी आदि असामान्य रुप दिख सकते हैं। इतना ही नही, बाल यौन-शोषित आगे चलकर रिएक्टिव डिप्रेशन,मैनिया,फोबिया व विभिन्न व्यक्तित्व-विकार से भी ग्रसित हो सकता है।

उन्होंने बचाव के तरीके बताते हुए कहा कि पीड़ित-मासूम के स्वजन घटना-विशेष को दोहराने से बचें तथा ऐसे दृश्यों व उत्प्रेरको से मासूम को दूर रखे जिससे घटना की स्मृतियां जीवंत हों तथा  मनोरंज़क व अन्य गतिविधियों को प्रोत्साहित करें। वर्चुअल-एक्सपोजर व सपोर्टिव-साइकोथेरैपी पीड़ित-मासूम को सदमे से उबारने में बहुत ही कारगर है। गुड-टच व बैड- टच की ट्रेनिंग घर व स्कूल में देते रहने के साथ ही स्कूल कॉउंसलर द्वारा मासूमों के साथ अकेले में की जाने वाली निदानात्मक- बातचीत व रोल-मॉडलिंग से मासूमों मे बड़ों द्वारा सेक्सुअल-एब्यूज के कृत्यों की पहचान व सावधानीपूर्ण मदद व शिकायक की सतर्कता- जागरूकता पैदा करने में  काफी मददगार होती है।

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