अयोध्या। यश विद्या मंदिर में आयोजित वर्क प्लेस स्ट्रेस मैनेजमेंट कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि स्ट्रेस या तनाव जीवन का अभिन्न अंग है परन्तु मनो-स्वस्थ व्यक्ति रोजमर्रा के तनावों को सकारात्मक मनोप्रबंधन करते हुए अपनी कार्य ,कार्य क्षमता का सम्यक उपयोग करता है । इन रोजमर्रा के तनावों में अहम हिस्सेदारी कार्य स्थल तनाव की होती है। बदलते परिवेश में जहां एक ओर वर्क प्लेस स्ट्रेस बढ़ता जा रहा ,वही दूसरी ओर मनोसंबल कम होता जा रहा है। जिससे स्ट्रेस बढ़कर डिस्ट्रेस का रूप ले रहा है। डिस्ट्रेस एक हताशा या मनोथकान की अवस्था है जिसके मनोशारीरिक दुष्प्रभाव अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, भूख में कमी,पेट खराब रहना, सर दर्द, थकान , उदासी, कार्य मे मन न लगना, सहकर्मियों व आगंतुकों से वाद विवाद, अधिक अनुपस्थिति आदि रुप मे दिखाई पड़ते है। इसका दुष्प्रभाव सामाजिक व पारिवारिक जीवन पर भी होने लगता है। लेफ्ट ब्रेन बौद्धिक व राइट ब्रेन भावनात्मक प्रक्रिया के लिये जिम्मेदार होता है। स्ट्रेस का असर भावनात्मक ब्रेन पर पड़ता है और सही प्रबंधन न होने पर मनोथकान का रूप ले लेता है जिसे बर्न आउट सिंड्रोम कहा जाता है। इससे बचाव के लिये भावनात्मक ब्रेन के सॉफ्टवेयर को इमोशनल इंटेलीजेंस के अभ्यास से अपडेट करते रहना चाहिये जिससे नकारात्मक मनोभाव जल्द ही उदासीन व खुश मिजाजी के भाव पुनर्स्थापित होते रहें। इमोशनल इंटेलिजेंस या भावनात्मक बुद्धिमता के चार कम्पोनेंट्स मे आत्म जागरूकता या सेल्फ अवेयरनेस,आत्म नियंत्रण या सेल्फ रेगुलेशन, समानुभूति या इम्पैथी व सामाजिक कौशल या सोशल स्किल्स शामिल है। तनाव पैदा करने वाले मनो रसायन कोर्टिसाल व एड्रेनिल को हैप्पी हार्मोन सेराटोनिन, डोपामीन, इनडॉर्फिन व ऑक्सीटोसिन बढ़ाने वाली हॉबी एक्टिविटी या सेल्फ टाइम एक्सपोज़र से उदसीन करते रहना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य सरिता तिवारी व संयोजन नूपुर श्रीवास्तव ने किया ।