Home Ayodhya/Ambedkar Nagar अम्बेडकर नगर अमोघ फलदायिनी है, मां दुर्गा का आठवां का स्वरूप

अमोघ फलदायिनी है, मां दुर्गा का आठवां का स्वरूप

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◆ व्रत एवं कन्या पूजन करने का भी विधान है शास्त्रों में वर्णित


◆ सभी पूजा पंडालों के खुलने से क्षेत्र का वातावरण हुआ भक्ति मय


@ सुभाष गुप्ता


बसखारी अंबेडकर नगर। नवरात्रि की सप्तमी तिथि को  माता नवदुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की वैदिक मंत्रों उच्चारण के बीच पूजा अर्चना करते हुए क्षेत्र में सजे हुए सभी पंडालो को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया है। जगत जननी मां के गगनभेदी जयकारों  के बीच पंडालों के पट खुलने से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो गया है। मनमोहक बिजली सजावट एवं पूजा समितियां के द्वारा  भव्य व विभिन्न मॉडलों में बनाए गए पूजा पंडालों में सजी श्री गणेश जी,लक्ष्मी जी, कार्तिकेय जी व माता सरस्वती के साथ महिषासुर राक्षस का मर्दन करने वाली मां दुर्गा की प्रतिमाएं लोगों की भक्ति का केंद्र बनी हुई है। शनिवार को अग्नि, जल, जंतु ,शत्रु ,रात्रि भय से भक्तो को मुक्ति दिलाने वाली माता कालरात्रि की पूजा आराधना देवी के भक्तों ने की। शनिवार को कालरात्रि माता की पूजा आराधना करने के साथ भक्तों की भीड़ क्षेत्र में सजे हुए पूजा पंडाल में उमड़ पड़ी। रविवार को नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर दुर्गा मां के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा आराधना करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। मंत्र उच्चारण व वैदिक विधान से महागौरी की नवरात्रि के आठवें दिन साधना करने से भक्तों के जन्म जन्मांतर के पूर्वसंचित पाप नष्ट हो जाते हैं। शंख,चंद्र और कुंद के पुष्प के उपमेय से सुशोभित मां के इस रूप की साधना करने से मनुष्य को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के नौ दिनों तक उपवास करते जो साधक मां दुर्गा मां की साधना करता है। उसके असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। इनकी उपासना करने से सोमचक्र जागृति होता है। महागौरी को धन ,वैभव और सुख शांति की अधिष्ठात्री देवी भी कहा गया है। नवदुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी के नामकरण के पीछे कथा प्रचलित है कि इन्होंने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। कई वर्षों तक की गई तपस्या के कारण इनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर उसे कांतिमय में बना दिया और उनका रूप गौरवर्ण का हो गया। तभी से इन्हें महागौरी कहा गया है। महागौरी का वस्त्र एवं आभूषण सफेद होने के कारण इन्हें श्वेतांबरधरा के नाम से भी पुकारा जाता है। शांत मुद्रा में चार भुजाओ में सुशोभित त्रिशूल, डमरु,वर व  अभय मुद्रा के साथ  मां अपने इस स्वरूप में वृषभ पर विराजमान हैं। जो साधक नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत नहीं रख पाते उनके लिए नवरात्रि की प्रथम व अष्टमी तिथि को उपवास करने का विधान भी शास्त्रों में वर्णित है। अष्टमी तिथि को सच्चे मन से मां के इस स्वरूप की पूजा अर्चना करने से अलौकिक सिद्धियों के साथ अमोघ फल की प्राप्ति होती है।अष्टमी तिथि को कन्या पूजन का  विशेष महत्व बताया गया है। 9 दिनों तक नवरात्रि व्रत रखकर मां के स्वरूपों की पूजा करने वाले जातक अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। जो माता के नौ स्वरूपों की प्रतिरूप मानी जाती है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। लेकिन नवमी की अपेक्षा अष्टमी के दिन किया जाने वाला कन्या पूजन श्रेष्ठ बताया गया है। कलश पूजन के पश्चात्य सफेद पुष्प, नारियल व नारियल से बने भोग प्रसाद के साथ हलवा, पूड़ी ,सब्जी काले चने का भोग लगाकर सच्चे मन से पूजा आराधना करने से महागौरी अति प्रसन्न होती हैं।और भक्तों को अलौकिक सिद्धियां की प्राप्ति का वर देती है।

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