◆ परिचित के भीतर छुपे यौन उत्पीड़क मनोवृति को पहचाने में चूक जाता है पीड़ित
अयोध्या। साइकोपैथिक या नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी या यौन विकृति से ग्रसित लोग ही यौन उत्पीड़न के कृत्य करते है। ये परपीड़क, आक्रामक, दुस्साहसी, निर्दयी और ग्लानिहीन व संवेदनहीन होते हैं । ऐसे लोग आवेगपूर्ण और अवसरवादी होते हैं। कुछ पुरुषों व महिलाओं में नित नये यौनिक अनुभव की लत होती है जिसे सटाइरोमैनिया व निम्फोमैनिया यौन विकृति कहा जाता है ।
बच्चो के यौन शोषण की मनोविकृति को पीडोफिलिया तथा विपरीत लिंगी अन्तःवस्त्रो से यौन आनंद की प्राप्ति को फेटिसिज्म तथा विपरीत लिंग के अंत अंगों को किसी बहाने से स्पर्श करने को फ्राट्युरिज्म तथा चोरी छिपे देखने की लत को वायुरिज्म कहते है। कुछ लोग यौन उत्पीड़न से खुद को शक्तिशली दिखाने व प्रतिशोध दिखाने की रुग मनोदशा से ग्रसित होते है। यौन शोषित व्यक्ति मनोआघात से ग्रसित हो सकता है जिससे वह भय, शर्म, ग्लानी व प्रतिशोध व अवसाद के मनो भाव से ग्रसित हो सकता है ।
उन्होंने बताया कि कार्य स्थल यौन शोषण के खिलाफ कानूनी प्रावधान जहां ऐसे कृत्य के निरोधात्मक उपाय है, वही दूसरी ओर कार्य स्थल की सुचिता व स्वस्थ टीम भावना के मनो भाव के संचार हेतु आचरण संहिता व सतर्कता से ऐसी घटनाओं से बचाव सम्भव है, क्योंकि ज्यादार कार्य स्थल यौन उत्पीड़न करने वाले लोग अजनबी नही बल्कि सहकर्मी या परिचित होते है । ऐसे लोगों को पीड़ित जानता तो है, पर उसके छुपे यौन उत्पीड़क मनोवृति को पहचाने में चूक गया। यह बातें मनुचा पी जी कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना स्थापना दिवस पर आयोजित विशेष कार्यशाला के मुख्य अतिथि वक्तव्य में डा आलोक मनदर्शन ने कही। अध्यक्षता प्राचार्य प्रो मंजूषा मिश्रा तथा संयोजन डा. पूनम शुक्ला व आभार ज्ञापन प्रो सुषमा पाठक ने दिया।