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भागवत कथा के पाचवें दिन भगवान की बाललीला का वर्णन सुन भाव विभोर हुए श्रोता

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अंबेडकर नगर। कटेहरी क्षेत्र के शाहपुर परासी ग्रामसभा के हौदवा स्थित प्राचीन शिव मंदिर पर क्षेत्र वासियों के सहयोग से अयोजित श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस कथावाचक बाल व्यास श्री नैना सरस किशोरी जी के द्वारा संगीतमय कथा वाचन कर भगवान की बाल लीलाओं के चरित्र का वर्णन किया।

बाल लीला की कथा के पूर्व कथावाचक बाल किशोरी जी ने कथा के मुख्य यजमान बने शैलेश तिवारी और उनकी पत्नी प्रतिमा तिवारी को भगवान की नामकरण की कथा सुनाई उन्होंने कहां कि एक दिन वासुदेव की प्रेरणा से कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल पधारे। नन्द यशोदा ने आदर सत्कार किया और वासुदेव देवकी का हाल लिया जब आने का कारण पूछा तो गर्गाचार्य ने बतलाया कि पास के गांव में बालक ने जन्म लिया है नामकरण के लिए जा रहा हूं बस रास्ते में तुम्हारा घर पड़ता था सो मिलने को आया हूं। यह सुन कर नन्द यशोदा ने अनुरोध किया बाबा हमारे यहां भी दो बालकों ने जन्म लिया है उनका भी नामकरण कर दो।

गर्गाचार्य ने मना किया तुम्हें है हर काम जोर शोर से करने की आदत है। कंस को पता चला तो मेरा जीना मुहाल करेगा। नन्द बाबा कहने लगे भगवन गौशाला में चुपचाप नामकरण कर देना हम ना किसी को बताएंगे। गर्गाचार्य तैयार हुए जब रोहिणी ने सुना कुल पुरोहित आए हैं गुणगान बखान करने लगी। यशोदा बोली गर्ग इतने बड़े पुरोहित हैं तो ऐसा करो अपने बच्चे हम बदल लेते हैं तुम मेरे लाला को और मैं तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी देखती हूं कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित सच्चाई जानते हैं।



माताएं परीक्षा पर उतर आईं। बच्चे बदल गौशाले में पहुंच गईं। यशोदा के हाथ में बच्चे को देख गर्गाचार्य कहने लगे ये रोहिणी का पुत्र है इसलिए एक नाम रौहणेय होगा अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा तो एक नाम राम होगा और बल में इसके समान कोई ना होगा तो एक नाम बल भी होगा मगर सबसे ज्यादा लिया जाने वाला नाम बलराम होगा। यह किसी में कोई भेद ना करेगा सबको अपनी तरफ आकर्षित करेगा तो एक नाम संकर्षण होगा।

अब जैसे ही रोहिणी की गोद के बालक को देखा तो गर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए अपनी सारी सुधि भूल गए खुली आंखों से प्रेम समाधि लग गयी गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थे ना जाने इसी तरह कितने पल निकल गए यह देख नंद बाबा और यशोदा घबरा गए हिलाकर पूछने लगे बाबा क्या हुआ बालक का नामकरण करने आए हो क्या यह भूल गए। यह सुन गर्गाचार्य को होश आया और एकदम बोल पड़े नन्द तुम्हारा बालक कोई साधारण इंसान नहीं यह तो यह कहते हुए जैसे ही उन्होंने अंगुली उठाई तभी कान्हा ने आंख दिखाई। कहने वाले थे गर्गाचार्य कि यह तो साक्षात् भगवान हैं। तभी कान्हा ने आंखों ही आंखों में गर्गाचार्य को धमकाया बाबा मेरे भेद नहीं खोलना। मैं जानता हूं बाबा यहां दुनिया भगवान का क्या करती है उसे पूज कर अलमारी में बंद कर देती है और मैं अलमारी में बंद होने नहीं आया हूं, मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूं, मां की ममता में खुद को भिगोने आया हूं अगर आपने भेद बतला दिया मेरा हाल क्या होगा यह मैंने तुम्हें समझा दिया। मगर गर्गाचार्य मान नहीं पाए जैसे ही दोबारा बोले ये तो साक्षात् तभी कान्हा ने फिर धमकाया बाबा मान जाओ नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी और अंगुली उठी की उठी रह जाएगी। यह सारा खेल आंखों ही आंखों में हो रहा था पास बैठे नन्द यशोदा को कुछ ना पता चला था। अब गर्गाचार्य बोल उठे आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे जैसे कर्म करता जाएगा वैसे नए नाम होते जाएंगे लेकिन क्योंकि इसने इस बार काला रंग पाया है और कृष्ण पक्ष में जन्म हुआ है इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा इससे पहले यह  कई रंगों में आया है। मैया बोली बाबा यह कैसा नाम बताया है इसे बोलने में तो मेरी जीभ ने चक्कर खाया है। कोई आसान नाम बतला देना तब गर्गाचार्य कहने लगे मैया तुम इसे कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना कह लेना। यह सुन मैया मुस्कुरा उठी और सारी उम्र कान्हा कहकर बुलाती रही। तत्पश्चात आगे की कथा में व्यास जी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया। उनके मुख से प्रभु की कथा सुन मौजूद श्रद्धालु भक्ति में लीन होकर जयकारे लगाने लगे। किशोरी जी ने श्रोताओं से कहा कि लीला और क्रिया में अंतर होती है। अभिमान तथा सुखी रहने की इच्छा प्रक्रिया कहलाती है। इसे ना तो कर्तव्य का अभिमान है और ना ही सुखी रहने की इच्छा, बल्कि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यही लीला की, जिससे समस्त गोकुलवासी सुखी और संपन्न थे। उन्होंने कहा कि माखन चोरी करने का आशय मन की चोरी से है। कन्हैया ने भक्तों के मन की चोरी की। उन्होंने तमाम बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कथा के समापन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रारूप बनाकर विधिवत मंत्रोंचार द्वारा मंच पर विराजित पुरोहित महंत शिवमदास जी महराज द्वारा पूजा करवाया तत्पश्चात कथाव्यास जी द्वारा गोवर्धन जी की कथा कहकर उपस्थित श्रोताओं को वात्सल्य प्रेम में सराबोर कर दिया। कथा के समापन के समय कथा के मुख्य आयोजन कर्ता भाजपा लोकसभा संयोजक प्रवास अविनाश तिवारी,शिवकुमार तिवारी,पत्रकार महेंद्र मिश्र,विशाल उपाध्याय,सोनू पाठक, पिंकू उपाध्याय,पत्रकार मुकेश मिश्र,आदि लोगो के साथ भक्त श्रोतागण विदुषी महाविद्यालय के प्रबंधक विजयकांत दूबे,रामानंद तिवारी, प्रदीप पाण्डेय, ओमप्रकाश तिवारी, एडवोकेट मुकेश तिवारी,विवेक दूबे,अमित तिवारी,ग्राम प्रधान अशरफपुर बरवा शोले वर्मा,संजय वर्मा आदि के साथ सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु कथा का श्रवण पान किए।

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