आलापुर अंबेडकरनगर। समकालीन साहित्य में छांदस स्वरों की अनुगूँज, ‘गीत गोदावरी’ द्वारा ओंकार त्रिपाठी के कृतिफल स्वरूप, लोकार्पित हुई। साहित्य नव सृजन, गाजियाबाद के अंतर्गत, आयोजन की अध्यक्षता, डॉक्टर राज नारायण शुक्ल, पूर्व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ द्वारा व मुख्य अतिथि के रूप में डॉक्टर जय सिंह आर्य, विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष अग्निहोत्री व वरिष्ठ साहित्यकार मीना जैन की उपस्थिति ने मंच को गरिमामयी आभा प्रदान की।
किरण नादर कला म्यूजियम के अवलोकनोपरांत आयोजन को सांगोपांग, कलामय और रविरश्मि आभा से, अनुपमा पांडेय ‘भारतीय’ संस्थापिका एवं महासचिव, द्वारा संचालित किया गया। गीत गोदावरी के धवल स्वर पंखों के विस्तार की असीमितता को विवेचनात्मक दृष्टि से छूने का प्रयास किया गया, किन्तु क्षितिज की सुदूर दृष्टि से विस्तारित, यह भाव व्योम, चिन्तन आयामों को अपनी परिधि विस्तार से चकित ही करता रहा।
मुख्य अतिथि डॉ जय सिंह आर्य द्वारा ‘गीत गोदावरी’ को सामाजिक मूल्यों के अवदान हेतु अनुकरणीय कृतित्व कहा गया। उन्होंने कहा, मानवीयता, दर्शन और समाजोपयोगी मूल्यों को इस संकलन द्वारा पुनः रोपित किया गया है।
विशिष्ट अतिथि व० पत्रकार आशुतोष अग्निहोत्री द्वारा कवि धर्म की शुचिता, लोककल्याण और सार्थक जीवनमूल्यों के अवगाहन की सोद्देश्यता को प्रखरता से इंगित किया गया। उन्होंने गीत गोदावरी को पढ़ने के लिए सभी नवोदित और स्थापित साहित्यकारों का आह्वान किया। विशिष्ट अतिथि व० साहित्यकार मीना जैन द्वारा ‘गीत गोदावरी’ को प्रेम और शाश्वत चिन्तन की पराशक्ति रूपा पठनीय बताया। प्रेम की विशद तत्वता और जीवन साहचर्य में उस के आध्यात्मिक अनुदान को विवेचित किया।
भाव पक्ष के सतोगुण, डॉ जयशंकर शुक्ला को वक्तृता के निर्बन्ध निर्झर बना गए। जनसमूह उन्हें मन्त्रमुग्ध हो सुनता ही रहा। रचना और रचनाकार की एकरूपता को समालोचित करते हुए, वे स्वयं एकत्व भाव से गीत गोदावरी की उन्मुक्त धारा समान प्रतीत हो रहे थे। उनके भावों का तारल्य संघनित होकर, गीतकार के जिस प्रतिरूप को गढ़ रहा था, वह ‘महाकवि’ की उपाधिस्वरूप उद्घाटित हुआ।
शिल्प और भाषा की गुणत्रयी के निकष पर विनय विक्रम सिंह के अनुसार, कृतित्व की साकारता पूर्णतया परिपक्व रही। गीतों के भावबोध में, शिल्प के गुणकोष से लोच और तारल्यता की, समग्रता से समाहिती दृष्टव्य है। कसाव में कहीं भी रुक्षता दृष्टव्य नहीं है, शब्दों ने किलष्टता और सहजता को स्वयं ही अंगीकार किया है। गीतों में शब्द, भाषा रूप में न होकर अभिव्यक्ति स्वरूप हैं, उन्होंने स्वतः अपनी परिधि को विस्तारित कर ग्राह्यता और सम्प्रेषण को प्रधानता दी है।
रचनाकार ओंकार त्रिपाठी ने अपनी मन की बात द्वारा, संकलन के नेपथ्य को पुनर्परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि, प्रेम की भौतिक अवधारणा में तात्विक और सात्विक समावेश की क्षरित होती सोद्देश्यता पर, लोक मानस के चिन्तन को पुनः पदक्षेप कराने हेतु ही, यह कविकर्म प्रतिपादित किया है। सांसारिक व्यामोह की आकण्ठ लिप्तता से ग्रस्त जनमानस क्या देहत्व के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखना चाहता? भौतिक उपलब्धियों के संजाल क्या उसके चेतन चक्षुओं को अंधत्व की ओर तो नहीं धकेल रहे? कहीं असीम और माधुर्य का स्नेह, इन मर्त्यतृप्तियों के वशीभूत हो, दिन-प्रतिदिन अमानवीयता से तो नहीं ढँकता जा रहा? संकलन के गीत, दैहिक शैथिल्य से आरोपित न होकर, दैव्य सुचिन्तना के मुक्ताकाश को विस्तार देने हेतु ही इस संकलन के रूप में उपस्थित हुए हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर राज नारायण शुक्ला ने, ‘गीत गोदावरी’ में ‘गोदावरी’ को भारतीयता के सन्दर्भ से आभरित करते हुए, राष्ट्र चेतना से संयोजित किया। उनका कथन क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि संकुचितता के एकांगी पक्षों से ऊपर उठकर व्यष्टि और समष्टि की एकरूपता पर केन्द्रित रहा। लेखन संसार की विविध धाराओं में चेतना मूल्यों और कथ्य में बहुपयोगिता के अवरोहण के साथ-साथ समाज के हर पाठक वर्ग से जुड़ने वाले सृजन की संस्तुति की।
आयोजन को उसके उच्चतम आयाम पर अवस्थित करने में वरिष्ठ साहित्यकारों की वरेण्य उपस्थिति रही, जिनमें बाबा कानपुरी, डॉ हरिदत्त गौतम, जयराम शर्मा, संजय जैन, सरिता जैन, वंदना कुंवर, आलोक यादव, तूलिका सेठ, डॉ ममता वार्ष्णेय, पुष्पलता बजाज, अवधेश निर्झर, राज कुमार प्रतापगढ़िया पूजा श्रीवास्तव आदि नामचीन साहित्यकार रहे।
आयोजन स्थगन पर धन्यवाद ज्ञापन डॉ पूनम माटिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम की सफलता में कार्यकारिणी सदस्य, बी डी जोशी, यशपाल सिंह चौहान, बृज भूषण, नेहा शर्मा, प्रेरणा सिंह, संध्या सेठ, गीतांजलि जादौन की महत्वपूर्ण भूमिका रही।