अयोध्या। भीषण गर्मी व बिजली की आंख-मिचौली का मनोशारीरिक दुस्प्रभाव अब दिखाई पड़ने लगा है। ब्रेन का टेम्परेचर रेगुलेटर- हाइपोथैलमश शरीर के तापमान को 37 डिग्री सेल्सियस बनाये रखता है, परन्तु वातावरणीय तापमान अधिक होने पर यह पसीने से व रक्त वाहिकाओं को शिथिल कर बॉडी-टेम्परेचर को बनाये रखने का प्रयास करता है। लम्बे समय तक यह स्थिति बनी रहने पर ब्रेन हीट-स्ट्रेस में जाने लगता है जिसके व्यवहारिक, भावनात्मक व शारीरिक दुष्प्रभाव दिखते हैं जिसकी बानगी गृह क्लेश, कार्यस्थल द्वंद व सामाजिक उग्रता के रूप भी दिखने लगी है जिसे हीट-स्ट्रेस न्यूरोसिस कहा जाता है।
लक्षण व दुष्प्रभाव – हीट-स्ट्रेस न्यूरोसिस या ताप-दबाव मनोविकार की दशा में स्ट्रेस-हार्मोन कार्टिसाल व एड्रेनलिन लगातार बढ़े रहने से नींद की लयबद्धता दुष्प्रभावित हो कर स्लीप ट्रेमर,नाइट- मेयर,सोमनाएम्बुलिज्म व स्लीप-पैरालिसिस जैसे स्लीप-डिसऑर्डर के अटैक होने की सम्भावना भी होती है जिसमें नींद के दौरान चौकना,चीखना, दिल की धड़कन तेज़ होना व मुँह सूखने जैसे लक्षण शामिल हैं। इसके डे-टाइम दुष्प्रभावों में अनमनापन,एकाग्रता में कमीं, चिड़चिड़ापन,थकान, सरदर्द, बदहजमी, एसिडिटी, तेज़ धड़कन, सीने में दर्द,आक्रामकता,आत्मघात व नशा-सेवन जैसे लक्षण भी सम्भावित हैं जिसे हीट-स्ट्रेस न्यूरोसिस कहा जाता है। जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्श केंद्र मन-कक्ष में ऐसे मरीजों की आमद में तेजी से इजाफा हुआ है ।
जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन के अनुसार मस्तिष्क के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस का वातावरणीय तापमान व पर्याप्त वेंटीलेशन जरूरी है। उचित तापमान व वेंटिलेशन का प्रबंधन इस प्रकार किया जाय कि निद्रा कम से कम दुष्प्रभावित हो। नींद में खलल पड़ने पर मनोसंयम बरतते हुए दिन भर के क्रिया-कलापों में हीट- स्ट्रेस न्यूरोसिस के लक्षणों के प्रति सजग रहें तथा समस्या पढ़ने पर मनोपरामर्श अवश्य लें।