Monday, November 25, 2024
Homeअयोध्या समाचार विशेषगुरु पूर्णिमा चरित्र, संकल्प व राष्ट्र निर्माण की पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा चरित्र, संकल्प व राष्ट्र निर्माण की पूर्णिमा

Ayodhya Samachar


डा0 मुरली धर सिंह शास्त्री
उप निदेशक सूचना, अयोध्या धाम/प्रभारी मीडिया सेन्टर लोक भवन लखनऊ।
मो0-7080510637/9453005405,


अयोध्या। गुरू पूर्णिमा केवल गुरू की ही नही बल्कि चरित्र, संकल्प व राष्ट्र निर्माण की पूर्णिमा है। सभी को अपनाना चाहिए। हमारे देश में गुरू पूर्णिमा एवं गुरू का अद्वितीय महत्व है। गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते है। व्यास जी का जन्म और उनकी गुरू शिक्षा एवं 18 पुराण की रचना इसी व्यास पूर्णिमा के दिन पूर्ण हुई थी तथा व्यास जी स्वयं भगवान श्रीहरि के अवतार है और यह सदैव अमर है।
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं। देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ।।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ।।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
नास्ति मातृ समो गुरुः।
नास्ति पितृ समो देवः।
नास्त्रि पत्नी समो मित्रः।
नास्ति पुत्र समो सखाः।।
भावार्थ- ऋग्वेद में कहा गया है कि माता के सामान कोई गुरू नही होता, पिता के सामान कोई देवता नही होता, पत्नी के सामान कोई मित्र नही होता तथा पुत्र के सामान कोई सखा नही होता।
गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों/अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (जून-जुलाई) मनाया जाता है। इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
पर्व
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है-अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है-उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है।
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया, चकच्छूरू मिलिटम येन तस्मै श्री गुरुवै नमः
गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
गुरु पूर्णिमा 2023 में कब हैं, कब और क्यों मनाई जाती हैं, कथा, महत्व, निबंध, मुहूर्त, सुविचार, भजन
देव शयनी ग्यारस के साथ ही हिंदू धर्म में त्योहारों का ताता शुरू हो जाता है इसी दिशा में अगला त्योहार गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने वाला है। जी हां गुरु को सम्मान देने के लिए यह एक दिन गुरु पूर्णिमा का दिन कहलाता है। यह कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है। इसकी पूरी जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी। साथ ही इस साल गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त कितने से कितने बजे तक का है इसकी जानकारी भी आपको हम यहाँ देने जा रहे हैं इसलिए इस लेख के साथ अंत तक बने रहिये। भारत देश के त्योहारों में गुरु पूर्णिमा का एक विशेष महत्व है। हिंदू धर्म सिख धर्म इन दोनों ही धर्मों में गुरु का एक अलग ही स्थान है, गुरु को सबसे ऊपर माना जाता है जोकि अंधकार को प्रकाश में बदलने की शक्ति रखता है। इस वर्ष महामारी के कारण सभी त्योहारों को घर में बैठकर परिवारजनों के साथ ही मिलकर मनाया गया उसी तरह अब गुरु पूर्णिमा को भी घर में रहकर ही मनाना सही रहेगा क्योंकि अभी भी महामारी का प्रकोप अपनी जगह है। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी गुरु पूर्णिमा जुलाई महीने में है. इस तरह से इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ता चला जा रहा है। आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा से जुड़ी कई कहानियों एवं अन्य चीजों के बारे में।
गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था महर्षि वेदव्यास नहीं महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी इसके साथ ही सभी अठारह पुराणों की रचना भी गुरु वेद व्यास द्वारा ही की गई इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है
मनुष्य और गुरु का एक अटूट संबंध है। मनुष्य जीवन में गुरू को देव स्थान प्राप्त है गुरु के सम्मान और सत्कार के लिए ही इस दिन गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार भगवान वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था जिसे आज के समय में गुरु पूर्णिमा के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। हिंदू देश में भगवान के ऊपर गुरु का महत्व बताया गया है क्योंकि भगवान का हमारे जीवन में महत्व ही हमें गुरु के द्वारा प्राप्त हुआ है। यह माना जाता है कि अच्छे बुरे संस्कारों धर्म अधर्म आदि का ज्ञान पूरे विश्व में गुरु के द्वारा ही अपने शिष्यों को दिया जाता है। इसी उद्देश्य को पूरा करते हुए गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता हैऔर इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ गुरु की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि मनुष्य को अपने जीवन में एक गुरु बनाना चाहिए। जिसके अंतर्गत गुरु की दीक्षा ली जाती है और गुरु द्वारा कहे गए आचरण का पालन किया जाता है माना जाता है कि इससे उस मनुष्य को जीवन में मार्गदर्शन प्राप्त होता है और उसके जीवन के कष्ट काम होते हैं और उसे जीवन की एक उचित राह मिलती है इस तरह उसका जीवन खुशहाल हो जाता है।
गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है
प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यहां प्रतिवर्ष जुलाई अथवा अगस्त माह में मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है
गुरु पूर्णिमा के दिन जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ कपड़ों का धारण किया जाता है।
मंदिर अथवा घरों में बैठकर गुरु की उपासना की जाती है।
गुरु के पूजन हेतु कई लोग उनकी फोटो के सामने पाठ पूजा करते हैं कई लोग ध्यान मुद्रा में रहकर गुरु मंत्र का जाप करते हैं।
सिख समाज के लोग इस दिन गुरुद्वारे जाकर कीर्तन एवं पाठ पूजा करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं जिसमें एक वक्त भोजन एवं एक वक्त फलाहार आदि का नियम का पालन किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन दान दक्षिणा का आयोजन भी किया जाता है।
खास तौर पर गुरु का सम्मान कर उनका पूजन करने की प्रथा है।

Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments