अंबेडकर नगर। जिलाधिकारी अविनाश सिंह ने लोहिया भवन के सामने हवाई पट्टी के नजदीक स्थापित किए जा रहे टैंक टी – 55 के स्थापना कार्यों का भौतिक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया कि टैंक के डेंटिंग- पेंटिंग कार्यों को तीव्र गति से एवं गुणवत्तापूर्ण ढंग से किया जाए। टैंक के फाउंडेशन के अवशेष कार्यों को शीघ्र पूर्ण कराने तथा आसपास साफ- सफाई और बेहतर करने के निर्देश दिए।
अवगत कराना है कि वर्ष 1958 में भारतीय सेना की सेवा में आए इस टी–55 टैंक का निर्माण रूस में हुआ। यह टैंक 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने वाला है। 1950 के दशक में बना टी-55 सबसे प्रभावी टैंकों में शामिल है। यह टैंक अभी भी कई देशों में सीमा की सुरक्षा संभाल रहा है। यह चार – पांच दिसंबर 1971 को लोंगेवाला की लड़ाई में दुश्मनों पर काल बनकर गरजता रहा। टी – 55 टैंक में युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम व देश की सुरक्षा से जुड़े जज्बे का प्रतीक है। 1971 में इस टैंक के जरिये ही फख-ए-हिन्दू मेजर जनरल हनुवंत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना पर मौत बन टूट पड़ा था। इसी टैंक के कदमों में पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण करते हुए घुटने टेके थे। यह दुनिया का सबसे ताकतवर टैंक था।
सामरिक शक्तिः 12.7 एमएम की एंटी एयर क्राफ्ट गन और 7.62 एमएम मशीनगन, 100 एमएम की मुख्य तोप राइफल गन से लैस यह टैंक 35 से 40 राउंड लगातार फायर कर सकता है। यह जमीन से आसमान तक दुश्मन और उसके जहाजों को मार गिराने की क्षमता वाला है। यह 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान में रेतीले टीलों पर 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ता रहा है और कम पानी में भी यह चलने की क्षमता वाला है। 580 हार्सपावर का इसका इंजन 400 किलामीटर तक एक बार में ईंधन फुल कर लगातार चल सकता है। तोप की बेरल के साथ नौ मीटर तथा बिना बैरल के 6.27 मीटर लंबे, 3.15 मीटर चौड़े, 2.4 मीटर ऊंचे इस टैंक का वजन 36 टन है। टैंक के सामने के हिस्से पर 120 एमएम, बगल 80 एमएम एवं पीछे 45 एमएम की मोटी लोहे की चादर इसे अभेद बनाती है, इस टैंक में चालक समेत चार सैनिक सवार होतें हैं।