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बी.एन.के.बी. पीजी कॉलेज में काकोरी ट्रेन एक्शन दिवस के 100वीं वर्षगांठ के पर श्रद्धाजंलि सभा और संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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अम्बेडकर नगर। बी.एन.के.बी. पीजी कॉलेज के एन सी सी विंग द्वारा काकोरी ट्रेन एक्शन दिवस के 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर श्रद्धाजंलि सभा और संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. शुचिता पांडेय ने किया। बीज वक्ता हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. शशांक मिश्र और मुख्य वक्ता हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सत्यप्रकाश त्रिपाठी और अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष सन्तोष कुमार रहे। कार्यक्रम का संचालन वागीश शुक्ल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विवेक तिवारी ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ शहीदों और माँ सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करके किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय की प्राचार्य  प्रो. शुचिता पांडेय ने कहा कि काकोरी काण्ड का मुकदमा लखनऊ में चल रहा था। पण्डित जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे। उन्होंने अभियुक्तों के लिए “मुल्जिमान” की जगह “मुलाजिम” शब्द बोल दिया। फिर क्या था पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने तपाक से उन पर ये चुटीली फब्ती कसी: “मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से; कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।” उनके कहने का मतलब स्पष्ट था कि मुलाजिम वे (बिस्मिल) नहीं, मुल्ला जी हैं जो सरकार से तनख्वाह पाते हैं।

कार्यक्रम में अपने बीज वक्तव्य देते हुए डॉ. शशांक मिश्र ने कहा कि क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतन्त्रता के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। आगे बताया कि लखनऊ जेल में काकोरी षड्यन्त्र के सभी अभियुक्त कैद थे। केस चल रहा था इसी दौरान बसन्त पंचमी का त्यौहार आ गया। सब क्रान्तिकारियों ने मिलकर तय किया कि कल बसन्त पंचमी के दिन हम सभी सर पर पीली टोपी और हाथ में पीला रूमाल लेकर कोर्ट चलेंगे। उन्होंने अपने नेता राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ से कहा- “पण्डित जी! कल के लिये कोई फड़कती हुई कविता लिखिये, उसे हम सब मिलकर गायेंगे।” अगले दिन कविता तैयार थी-

मेरा रँग दे बसन्ती चोला….

हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला….

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. सत्य प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि भारत मां के पैरों पड़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए क्रांति की तीन धाराएं उठी. पहली सन 1857, दूसरी 1922 से 1931 तक और तीसरी 1940 के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में. इनमें से दूसरी क्रांति की धारा का नेतृत्व शाहजहांपुर ने किया था। जब गांधी जी के असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता शचींद्रनाथ सान्याल के साथ मिलकर हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संगठन की स्थापना की. संगठन का उद्देश्य था भारत में सशस्त्र क्रांति के बल पर अंग्रेजों के शासन को उखाड़ फेंकना। ऐसे में शस्त्रों के लिए धन की आवश्यकता थी, जिसके बाद क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को 8 डाउन ट्रेन को रोककर उसमें से सरकारी खजाना लूट लिया गया।

अंग्रेजी विभागाध्यक्ष सन्तोष कुमार ने अपने वक्तव्य में शहीदों के बलिदान को याद करते हुए कहा कि काकोरी की घटना युवाओं को प्रेरणा देती रहेगी। कार्यक्रम में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और अन्य क्रांतिकारियों के योगदान को याद किया गया। उन्होंने कहा कि भारत में इतिहास को दबाने की कोशिशें की गई हैं। हमें अपना इतिहास खुद जानने की जरूरत है।

एन. सी. सी.  कैडेट्स ने इस अवसर पर देश-भक्ति से ओतप्रोत रचनाओं की प्रस्तुति की।

इस मौके पर प्रो.जयमंगल पांडेय, मनोज श्रीवास्तव, डॉ. अनिल कुमार, दिनेश वर्मा, डॉ. अतुल मिश्र, हरिकेश यादव, अमित कुमार, आशीष चतुर्वेदी, अंचल चौरसिया समेत महाविद्यालय के शिक्षकगण, कर्मचारीगण उपस्थित रहे।

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