Thursday, November 21, 2024
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सरयू जल साक्षात परम ब्रहम है जो मोक्ष प्रदान करता है

Ayodhya Samachar

  • पढे और जाने पावन सलिला सरयू के बारे में 


  • रामलला के बालरूप के लिए धरती पर अवतरित हुई


  • सरयू वशिष्ट की पुत्री थी जिस कारण से भगवान राम उन्हे अपनी बहन मानते थे


@ अमित मिश्र अयोध्या समाचार


 सरयू नदी के बारें में धामिक मान्यता यह है कि वे भगवान श्रीराम की बाल लीला का दर्शन करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। कई पौराणिक आख्यान यह बताते है कि सरयू का अवतरण गंगा से पहले हुआ था। सरयू जल को सक्षात ब्रहम स्वरुप बताया जाता है। अयोध्या में भगवान का पूजन अर्चन बिना सरयू जन के सम्भव नहीं है। इस कारण अयोध्या के किसी भी मंदिर में प्रवेश से पहले सरयू का दर्शन तथा स्नान आवश्यक होता है।

पौराणिक आख्यानों में सरयू को बह्मचारिणी बताया गया है। इसके जल मंे स्नान कर वह तीर्थ भी पाप मुक्त हो जाते है तो दूसरो को पापमुक्त करते थे। सरयू नदी के बारें मे लिखा गया है कि

जलरुपेण ब्रम्हैव सरयू मोक्षदा सदा। नैवात्र कर्मषो रामरुपो भवेन्नरः।।

अर्थात सरयू जल रुप सक्षात परम बह्म है जो हमे मोक्ष प्रदान करती है। महाभारत, भीष्मपर्व, मे सरयू का नामोल्लेख इस प्रकार है. हस्यां शतकुभां च सरयूं च तथैव चए चर्मण्वतीं वेत्रवतीं हस्तिसोमां दिश्र तथा। श्रीमद्भागवत, मे भारत की नदियों में सरयू का वर्णन इस प्रकार है। यमुना सरस्वती दृषद्वती गोमती सरयू। मिलिंदपन्हो नामक बौद्ध ग्रंथ में सरयू का सरभू् नाम से उल्लेख मिलता है। जो कि मात्र अपभ्रंस है। रामचरितमानस में सरयू की महत्ता का उल्लेख करते हुए गोस्वामी जी ने लिखा है अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिश बह सरयू पावनी।। रामचरित मानस में गोस्वामी तुुलसीदास जी ने इस चौपाई  के माध्यम से सरयू नदी को अयोध्या की प्रमुख पहचान के रूप में प्रस्तुत किया है। राम की जन्म.भूमि अयोध्या से उत्तकर  दिशा में पावन सलिला सरयू बह रही है। रामायण काल में सरयू कोसल जनपद की प्रमुख नदी थी। सरयू नदी का ऋग्वेद में उल्लेख है और यह कहा गया है कि यदु और तुर्वससु ने इसे पार किया था। पाणिनि ने अष्टाध्यायी, में सरयू का नामोल्लेख किया है। पद्मपुराण के उत्तरखंड, में भी सरयू नदी का माहात्म्य वर्णित है।


लोक भाषा में कहा जाता है कि सरयू में नित दूध बहत है मूरख जाने पानी।

अर्थात पावन सलिला सरयू में निरंतर दूग्ध रूपी अमृत बह रहा है मूर्ख जिसे पानी समझते है।


वाल्मीकी रामायण तथा अन्य पौराणिक आख्यानों के अनुसार ब्रह्माजी ने अपने मनोयोग से हिमालय पर्वत में रमणीय क्षेत्र में एक सरोवर का निर्माण किया। जिस सरोवर का नाम मानस-सर पड़ा। इस सरोवर से निकली नदी सरयू नाम से लोक प्रसिद्ध हुई। जिसका गोस्वामी तुलसीदास जी ने इनका उद्बोधन मानसनंदनी नाम से भी किया। सरयू मानसरोवर से पहले कौड़याली नाम धारण करके बहती है। फिर इसका नाम सरयू और अंत इसे घाघरा या घर्घरा के नाम से जाना जाता है।

सरयू छपरा बिहार के निकट गंगा में मिलती है। गंगा-सरयू संगम पर चेरान नामक प्राचीन स्थान है। कालिदास ने सरयू, जाह्नवी संगम को तीर्थ बताया है। यहां दशरथ के पिता अज ने वृद्धावस्था में प्राण त्याग दिए थे। तीर्थे तोयव्यतिकरभवे जह्नुकन्यारव्वो देंहत्यागादमराणनालेखयमासाद्य सद्यः। तत्समय सम्भवत उपरोक्त तीर्थ चेरान के निकट रहा होगा।

सरयू नदी अयोध्यावासियों की बड़ी प्रिय नदी रही है। कालिदास के रघुवंश् में राम सरयू को जननी के समान ही पूज्य कहते हैं. सरयू के तट पर अनेक यज्ञों के रूपों का वर्णन कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश, में किया है. जलानि या तीरनिखातयूपा बहत्ययोष्यामनुराजधानीम्। महाभारत के  अनुशासनपर्व, में सरयू की उतपत्ति मानसरोवर से माना गया है। अध्यात्म रामायण् में भी इसी सरयू महिमा में लिखा गया है। कि एषा भागीरथी गंगा दृश्यते लोकपावनी, एषा सा दृश्यते सीते सरयूर्यूपमालिनी।

सरयू में देविका, घाघरा, राप्ती व छोटी गण्डक नदियां आकर मिलती है। देविका व घाघरा हिमालय की तराई में मिलती है। अयोध्या से पश्चिम लगभग किमी दूरी घाघरा व सरयू का संगम होता है संगम स्थल को वराह क्षेत्र अथवा सूकर क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

अयोध्या के प्रसिद्ध संत करपात्री जी महराज ने बताया कि गंगा से पुरानी नदी सरयू है। जब बहमा अपने पिता को खोज रहे थे तो उसकी समय भगवान विष्णु प्रगट हो गये तथा उनकी आंखो से प्रेम के जो आंसू निकले वही सरयू नदी कहलायी। सरयू वशिष्ट की पुत्री थी जिस कारण से भगवान राम उन्हे अपनी बहन मानते थे। बौध ग्रंथो में इसे सरभु नाम से भी पुकारा गया है। रामायण तथा राम चरित मानस के साथ ही कालिदास के रघुवंशम् महाकाव्य में भी इसकी महिमा का उल्लेख मिलता है।

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