अंबेडकर नगर। इसे उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा विभाग की कमी कहा जाय या वेतन से वंचित हजारों तदर्थ शिक्षकों का दुर्भाग्य कारण जो भी हो इतना तो तय ही है कि कोर्ट दर कोर्ट मुकदमों की बाढ़ और जलजले से लथरपथर 30 दिसंबर 2000 के बाद नियुक्त और कार्यरत शिक्षकों व उनके परिवारों का पिछले आठ महीनों से कोई पुरसाहाल नहीं है। हालात तो इतने बद से बदतर होते जा रहे हैं कि अब हर नये दिलासों के सहारे जीवनयापन को विवश तदर्थ शिक्षक न तो विद्यालयों में दायित्व निर्वहन को छोड़ पा रहे हैं और न कि किसी अन्य माध्यम या रोजगार द्वारा जीविकोपार्जन ही कर रहे हैं।लिहाजा पाल्यों की शिक्षा-दीक्षा से लेकर बीमारियों आदि की स्थितियों में जीवन जीना दिनोंदिन दुश्वारियों का शिकार होता जा रहा है।ऐसे में अब किसी नये दिलासे की बजाय सरकार द्वारा कोई ठोस कदम उठाते हुए हजारों तदर्थ शिक्षकों को भुखमरी और तंगहाली से बचाया जाना न केवल लोकमंगल का कृत्य होगा अपितु माध्यमिक शिक्षा विभाग और अध्ययनरत विद्यार्थियों के प्रति भी व्यापक जनहित का निर्णय होगा।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 1981 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयनबोर्ड के गठन के पूर्व सूबे के माध्यमिक विद्यालयों में सीटी, एल. टी व प्रवक्ता संवर्ग में नियुक्तियां माध्यमिक शिक्षा अधिनियम में वर्णित सुसंगत प्रावधानों यथा धारा 18 व 16(ई) के तहत की जाती थीं किन्तु चयनबोर्ड के गठन के पश्चात भी जब चयनबोर्ड के क्रियाशील होने में विलंब होने लगा तो चयनबोर्ड की प्राख्यापित धारा 33,जिसे की कठिनाई निवारण के नाम से जाना जाता है,के तहत फलित व मौलिक रिक्तियों के सापेक्ष अल्पकालिक नियुक्तियों का प्रावधान करते हुए कठिनाई निवारण के कुल छह आदेश अबतक हुए।जिनके तहत आयोग से चयनित अभ्यर्थियों के आनेतक सभी नियुक्तियां जारी रहती थीं।हालांकि सरकारों ने समय समय पर इन शिक्षकों के विनियमितीकरण आदेश जारी करते हुए इन शिक्षकों की सेवाओं का स्थायीकरण किया है।जिसके क्रम में पूर्ववर्ती सपा सरकार ने 22 मार्च 2016 को राजाज्ञा द्वारा 30 दिसंबर 2000 तक कट ऑफ डेट मानते हुए सभी नियुक्त व कार्यरत शिक्षकों की सेवाओं को नियमित करते हुए यूपी एक्ट -7 को प्राख्यापित किया था।यहां यह दृष्टव्य है कि कठिनाई निवारण जहां 25 जनवरी 1999 को तो धारा 18 भी 30 दिसंबर को समाप्त करते हुए उसके उपरांत अर्थात 31 दिसंबर 2000 से प्रबंधन द्वारा की गई नियुक्तियों को विधि विपरीत करार दिया गया था,जबकि ये नियुक्तियां भी अधिनियम की धारा 16(ई) की उपधारा 11 के तहत की गयी हैं।हाँ, यहां यह बात जरूर गौरतलब है कि इस धारा के तहत महज सत्रांत तक ही नियुक्तियों की वैधता आज भी अधिनियम में है किंतु उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णयों के क्रम में ये नियुक्तियां अनवरत चलती रहीं औरकि वर्ष 2000 के पश्चात नियुक्त शिक्षकों को उनके सारे देयक भी मिलते रहे,जोकि विभिन्न न्यायालयी प्रकरणों के उलटफेर में अब जुलाई 2022 से अबतक बाधित हैं औरकि गेंद सरकार के पाले में है।यहीं से दिलासों का भी नया दौर चल रहा है,जोकि अब सब्र के बांध पर भारी पड़ता दिख रहा है।
तदर्थ शिक्षकों के वेतन भुगतान हेतु विभिन्न शैक्षिक संगठनों के साथ ही साथ सभी शिक्षक व स्नातक विधायक भी समय समय पर सदन से सड़क तक,मंच से पन्च तक सरकार और सत्ता से पुरजोर मांग करते रहे है।जिसमें पूर्व एमएलसी सुरेश कुमार तिवारी,एमएलसी ध्रुव कुमार तिवारी,एमएलसी श्री चन्द्र शर्मा व उमेश द्विवेदी आदि प्रमुख हैं। जिनमें राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश के भाजपा के शिक्षक विधायक की त्वरित शीघ्रता आज भी जस की तस बनी हुई है।यही कारण है कि गत दिवस तदर्थ शिक्षकों के सम्बंध में मुख्यमंत्री ने श्रीचंद शर्मा,देवेंद्र प्रताप सिंह व उमेश द्विवेदी सहित सभी शिक्षक व स्नातक विधायकों से मुलाकात कर शीघ्र ही तदर्थ शिक्षकों की समस्याओं के निराकरण का आश्वासन दिया गया।
इस बाबत विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरकार तदर्थ शिक्षकों को 25000 व 30000 प्रतिमाह से अधिक मानदेय देने पर रजामंद नहीं है।सूत्रों के मुताबिक हाई स्कूल में पढ़ाने वालों को 25000 व इंटर के तदर्थ शिक्षकों को प्रतिमाह 30000 रुपये मानदेय पर वित्त विभाग से भी सहमति मिल चुकी है किंतु मुख्यमंत्री चाहते हैं कि सभी शिक्षक विधायक भी इस धनराशि की अधिकतम सीमा के अंतर्गत अपनी अपनी सहमति दें,यही प्रकरण का सबसे बड़ा रोड़ा है।शिक्षक विधायकों के अनुसार वे तदर्थ शिक्षकों को पूर्ण वेतनमान या अधिवर्षता पूर्ण करने की अवधि तक सम्मानजनक वेतन दिए जाने के पक्षधर हैं किंतु इसके लिए मुख्यमंत्री सहित वित्त व न्याय विभाग की सहमति आवश्यक है।
ऐसे में फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि दिलासों की घूंटी अभी कुछ दिन और पिलाई जाए,तो कोई शक नहीं।किन्तु इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तदर्थ शिक्षकों के लिए शुभप्रद होने की पूरी प्रत्याशा है।