◆ राजकीय पॉलीटेक्निक सेमिनार हाल मे आयोजित हुई कार्यशाला
अयोध्या। डा आलोक मनदर्शन का कहना है कि मानव-मन के दो प्रमुख हिस्से होते है जिसे चेतन व अवचेतन कहा जाता है। वैसे तो चेतन-मन की विमा अवचेतन-मन की विमा की सात गुना होती है, परन्तु अवचेतन-मन ही नकारात्मक व रुग्ण विचारों व मनोभावों के साफ्टवेयर को प्रतिपादित कर चेतन-मन से दुष्क्रियान्वित करने को बाध्य करता है। यह मनोदशा स्ट्रेस या एंग्जाइटी कहलाती है।
उन्होंने बताया कि स्ट्रेस या तनाव जीवन का अभिन्न अंग है, परन्तु मनो-स्वस्थ व्यक्ति रोजमर्रा के तनावों का प्रबंधन करते हुए कार्य क्षमता का सम्यक उपयोग करता है । इन रोजमर्रा के तनावों में अहम हिस्सेदारी कार्य स्थल तनाव की होती है। बदलते परिवेश में जहां एक ओर वर्क प्लेस स्ट्रेस बढ़ता जा रहा ,वही दूसरी ओर मनोसंबल कम होता जा रहा है जिससे स्ट्रेस बढ़कर डिस्ट्रेस का रूप ले रहा है। डिस्ट्रेस एक हताशा या मनोथकान की अवस्था है जिसमे अवचेतन-मन नकारात्मकता से ओतप्रोत हो चेतन-मन कीं कार्यप्रणाली को दुष्प्रभावित करती है। जिससे अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, भूख में कमी,पेट खराब रहना, सर दर्द, थकान , उदासी, कार्य मे मन न लगना, वाद विवाद ,डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हाइपोथाइराडिज्म जैसे लक्षण दिखाई पड़ते है। सही प्रबंधन न होने पर यह स्थिति मनोथकान का रूप ले सकती है जिसे बर्न आउट सिंड्रोम कहा जाता है। इससे बचाव के लिये चेतन-मन के सॉफ्टवेयर को हैप्पी हार्मोन से रिफ्रेश करते रहना चाहिये जिससे नकारात्मक मनोभाव उदासीन व खुश मिजाजी के भाव पुनर्स्थापित होते रहें। सात से आठ घंटे की नींद व हैप्पी हार्मोन सेराटोनिन , डोपामीन, इनडॉर्फिन व ऑक्सीटोसिन बढ़ाने वाली एक्टिविटी से उदासीन करते रहना चाहिए। उक्त बातें राजकीय पॉलीटेक्निक सेमिनार हाल मे आयोजित राष्ट्रीय संविधान दिवस संदर्भित मनोस्वास्थ्य – संविधान विषयक कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने कहीं। अध्यक्षता इंजी. संजय गुप्ता व संयोजन इंजी. संजय साहू ने किया।