अयोध्या। डा. आलोक मनदर्शन ने बताया कि रोल कांफ्लिक्ट या भूमिका द्वंद कार्यस्थल तनाव में अहम स्थान रखता है। इनमे प्रमुख है रोल ओवरलोड या भूमिका की अधिकता, रोल रस्टिंग या क्षमता से नीचे की भूमिका, रोल इनकम्पीटेंसी यानि क्षमता से बड़ी भूमिका, रोल स्टैगनेन्सी यानी लम्बे समय एक ही भूमिका मे बोर होना तथा रोल एम्बीगुटी यानि भूमिका का स्पष्ट ना होना तथा रोल एनक्रोचमेंट यानी भूमिकाओं का अतिक्रमण।
उन्होंने बताया कि भूमिका द्वंद जनित चिंता या तनाव बढ़ने पर आत्मविश्वास व कार्य क्षमता में भी गिरावट होती रहती है। इसके हाई रिस्क में एंक्सियस या ए टाइप पर्सनालिटी के लोग होते हैं। स्ट्रेस बढ़ जाने पर बेचैनी, घबराहट,अनिद्रा, ,चिड़चिड़ापन, सरदर्द, काम में मन न लगता, आत्मविश्वास में कमी जैसे लक्षण भी आ सकतें है। कार्यस्थल के ड्रामैटिक पर्सनालिटी या नाटकीय व्यक्तित्व के लोगों मे सहकर्मियों के प्रति असंवेदनशील होने के कारण तनाव के स्रोत जैसा कार्य करते है।
उन्होंने बताया कि स्वव्यक्तित्व की जागरूकता, इमोशनल रेगुलेशन, सहकर्मी, सुपीरियर के व्यक्तिव के प्रति भी विवेक पूर्ण समझ की मेन्टल कंडीशनिंग से कार्य स्थल का सफऱ सुगम व स्वस्थ रहेगा। मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन, डोपामिन, ऑक्सीटोसिन व एंडोर्फिन का संचार होगा जिससे दिमाग व शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं। यह जीवन चर्या हैप्पीट्यूड कहलाती है। यह बातें पैका लिमिटेड सभागार मे आयोजित वर्क प्लेस स्ट्रेस मैनेजमेंट कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने कही। कार्यशाला में प्रतिभागियों के संशय व सवालों का समाधान किया गया। अध्यक्षता संकर्षण शुक्ला व संयोजन दीपाली श्रीवास्तव ने किया।