अयोध्या। आधुनिक दौर में तेजी से बनते बिगड़ते दाम्पत्य सम्बंधों से उपज रहे अवसाद व अविश्वास जनित क्लेश, विघटन, हिंसा, आत्महत्या या परहत्या से ग्रसित समाज में करवा चौथ पर्व की मूल अवधारणा अति प्रासंगिक हो चुकी है। यह बात विश्व मनोजागरूकता पखवारा अभियान के तहत डॉ आलोक मनदर्शन ने कही । पाश्चात्य कुसंस्कृत व आपसी विश्वास व समर्पण में आ रही गिरावट से पारिवारिक विघटन व एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, लिव इन रिलेशन दायरे में उपज रहे शक वहम, लव-लाइफ ब्रेक-अप जनित प्रतिशोध आदि की मनोरुग्ण सोच से युवक व युवतियों की छद्म आधुनिकता की मनोउड़ान का दंश घातक रूप से पैर पैसार चुका है जिसकी बनगी आये दिन सुर्खियां बटोरती है।
उमंग व खुशी देने वाले हैप्पी हॉर्मोन सेरोटोनिन व डोपामिन तो हर पर्व में महसूस होते है ,पर करवा पर्व पति- पत्नी के भावनात्मक संबंधों को न केवल मजबूत करता है बल्कि दाम्पत्य जीवन की कुटुताओं व मनोविभेद को उदासीन कर समर्पण, निष्ठा व त्याग का पुनर्संचार करता है। डॉ मनदर्शन के अनुसार इस पर्व पर पति-पत्नी के मन में लव हार्मोन ऑक्सीटोसिन व समर्पण हार्मोन एंडोर्फिन सक्रिय हो जाता है जिससे प्यार व विश्वास की डोर मजबूत होती है। इस प्रकार करवा पर्व मॉडर्न युग की लव स्टेबलाइजर थेरैपी बन चुकी है।