अयोध्या। डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि मोबाइल व इंटरनेट की लत को डिजिटल ड्रग कहा जाने लगा है। क्योंकि इसके मनोदुष्परिणाम घातक नशीले पदार्थो जैसे होने लगे हैं जिसके प्रिवेंटिव व रेमेडियल उपायों पर तीन दिवसीय मंथन प्रशिक्षण सत्र में प्रतिभाग पूर्व यह बातें डा आलोक मनदर्शन ने बतायी । लखनऊ स्थित स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ एन्ड फैमिली वेलफेयर में यह सत्र 11 जुलाई से प्रारंभ होगा।
डॉ मनदर्शन के अनुसार सोशल मीडिया की लत के किशोरों में चार प्रमुख लक्षण होतें हैं जिसमे पहला लक्षण मोबाइल या इंटरनेट में लिप्त रहना या उसी के ख्याल में खोए रहना है। दूसरा लक्षण औसत मोबाइल समय का बढ़ते रहना , तीसरा लक्षण अपनी तलब को रोक न पाना तथा चौथा लक्षण लत पूरी न हो पाने या उसमें रोक टोक या बाधा उत्तपन्न होने पर क्रोधित या हिसक हो जाना शामिल है। इन्ही दुष्प्रभावों के मद्देनज़र भारत सरकार के राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में किशोरों द्वारा सोशल मीडिया के सुरक्षित इस्तेमाल के प्रति संवेदनशील जागरूकता कार्यक्रम को दिशा निर्देश का रुप दे दिया गया है क्योंकि इससे नशाखोरी, ऑनलाइन गेमिंग व गैंबलिंग की लत भी हो रही है जिसके आत्मघाती या परघाती परिणाम हो सकते है। यही मनोविकृति और गंभीर रूप ले लेता है जिसे अपोजिशनल डिफायन्ट डिसऑर्डर (ओ डी डी ) कहा जाता है इसमें किशोर या किशोरी बड़ो द्वारा डांट फटकार पाने पर छद्म अपमानित महसूस कर जाते है और आक्रोशित प्रतिरोध स्वरूप कुछ भी कर गजरने से गुरेज नही करते। ऐसी घटनाओं की बानगी आए दिन खबरों का हिस्सा बन रही हैं। डा मनदर्शन ने आशा व्यक्त की कि इस समस्या के प्रबंधन में जन मानस के संवेदीकरण तथा अभिभावक व टीचर मनोदक्षता संवर्धन में यह प्रशिक्षण अति प्रभावी होगा।