◆ विकास की अपेक्षा जातीय समीकरण की चर्चा ने पकड़ी रफ्तार
◆ लोकसभा क्षेत्र 55 अंबेडकर नगर
@ सुभाष गुप्ता
अंबेडकर नगर। गुरूवार को जनपद में हुई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली के बाद जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव आयोग की गाइडलाइन के अनुसार चुनाव प्रचार अभियान थम गया। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली में जुटी भारी भीड़ से इंडिया गठबंधन एवं बसपा के खेमे में हलचल मच गयी है। अमित शाह भी भारी भीड़ को देखकर गदगद नजर आए। उन्होंने मंच से मोदी सरकार एवं योगी सरकार की उपलब्धियां को गिनाते हुए अति पिछड़े मतों को भाजपा के पाले में करने के लिए सुहेलदेव की प्रतिमा लगाने की भी घोषणा की। यही नहीं बुद्ध जयंती पर लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने डॉ राम मनोहर लोहिया और जय राम वर्मा को याद कर पिछड़े व दलित मतों पर पकड़ बनाने की कोशिश की तो राम मंदिर व आरक्षण के मुद्दे पर हिंदू मतों को भी सहेजने का प्रयास किया। केंद्रीय मंत्री अमित शाह की रैली के बाद राजनीतिक गलियारों में विकास के मुद्दे की अपेक्षा जातिगत मुद्दों पर गणित लगाकर चुनाव जीतने की कवायद भी शुरू हो गई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है बल्कि 3 दशकों से हो रहे चुनाव में विकास की अपेक्षा जातिगत आंकड़े ही प्रत्याशियों की जीत हार का पैमाना बन रहे हैं। अगर हम जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां पर सबसे अधिक मतदाता दलित वर्ग से हैं। जिनकी संख्या 4 लाख के करीब बताई जा रही है।इसके बाद मुस्लिम मतदाता है जो 3 लाख के करीब है। ब्राह्मण मतदाता डेढ़ लाख के करीब, वैश्य मतदाता एक लाख 25 हजार के करीब, निषाद मतदाता 1 लाख 40 हजार के करीब,क्षत्रिय मतदाता 1 लाख के करीब, कुर्मी मतदाता एक लाख करीब, राजभर मतदाता एक लाख के करीब,यादव मतदाता 1 लाख के करीब शेष अन्य जातियों के मतदाता है। यह आंकड़े कोई सरकारी आंकड़े नहीं है। लेकिन अक्सर ही राजनीतिक चर्चाओं के लिए सजी चौपालों पर जातिगत संख्याओं की चर्चा इसी प्रकार से की जा रही है। वहीं सबसे अधिक दलित मतदाताओं में ऐसी कई अन्य जातियां हैं जो दलित तो है। लेकिन वह बसपा के वोट बैंक के रूप में नहीं जानी जाती है। इस प्रकार की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में करते हुए अंबेडकर नगर संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण की गुणा गणित लगाने में माहिर भाजपा,सपा व बसपा के कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी की जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं मतदाता मतदान को लेकर उत्साहित तो है। लेकिन चुनावी चर्चा में हार जीत को लेकर किए जा रहे सवाल पर खामोश नजर आ रहे है।